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दाग़ अच्छे हैं! नए चीफ सेक्रेटरी पर लग चुका है हजारों करोड़ का लांछन

समाचार फर्स्ट डेस्क |

दाग़ अच्छे हैं। इस टैगलाइन को आपने खूब सुना होगा। लगता है कि बीजेपी के पास भी राजनीतिक दाग़ धोने का कोई फॉर्मूला हाथ लग गया है। हिमाचल में जयराम ठाकुर के नेतृत्व में बीजपी की सरकार ने काम करना शुरू कर दिया है। लेकिन, सरकार बनते ही नए चीफ सेक्रेटरी की नियुक्ति सवालों के घेरे में है। बीजेपी की सरकार ने विनीत चौधरी को नया चीफ सेक्रेटरी नियुक्त किया है, मगर विनीत चौधरी वही शख्स हैं, जिन पर एम्स में 7000 करोड़ रुपये की अनियमितता के आरोप लगे थे। ऐसे में चुनाव पूर्व भ्रष्टाचार और भ्रष्टाचारियों के खिलाफ सख़्त कार्रवाई की बात करने वाली बीजेपी का पहला मूव ही विवादों के घेरे में है।

दरअसल, मई 2010 से लेकर नवंबर 2012 के बीच 'ऑल इंडिया इंस्ट्यूट ऑफ मेडिकल साइंस' (AIIMS) में 7,000 करोड़ रुपये के भ्रष्टाचार की बात उजागर हुई। आरोपों के घेरे में उस वक्त एम्स के तत्कालीन डेप्यूटी डायरेक्टर विनीत चौधरी थे। विनीत चौधरी के कार्यकाल के दौरान एम्स के आधारभूत ढांचे का विकास और झज्जर में नए कैंसर हॉस्पिटल बनाने का काम चल रहा था। पैसों का हेरफेर यहीं से शुरू हुआ। मामले में विनीत चौधरी और दूसरे आरोपियों के खिलाफ जांच भी शुरू हुई। लेकिन, मई 2017 में भारतीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने जांच पर फुल-स्टॉप लगा दिया और हाईकोर्ट में एक एफिडेविट दाखिल कर एक तरह से चौधरी को क्लिन चिट दे दी। 

इस मामले में 'इंडिया टुडे' ने जून 2017 में एक स्टोरी पब्लिश की और दावा किया कि जांच से जुड़े दस्तावेजों तक उसकी पहुंच बनी है, जिसमें विनीत चौधरी की भूमिका संदिग्ध है। 

क्या था पूरा घोटाला?

AIIMS के विकास और हरियाणा के झज्जर में नए कैंसर हॉस्पिटल बनाने के लिए बड़े पैमाने पर काम चल रहा था। इस दौरान दिल्ली कैंपस में पार्किंग के निर्माण और झज्जर के लिए जमीन खरीद में बड़े पैमाने पर भ्रष्टाचार की बात सामने आई। भ्रष्टाचार की जद में उस वक्त सबसे पहले एम्स के इंजीनियरिंग विभाग के प्रमुख बीएस आनंद आए। उसी बीएस आनंद को 2012 गलत तरीके से विनीत चौधरी ने 2 साल का एक्सटेंशन दे दिया। उस वक्त मामले की जांच कर रहा विजिलेंस विभाग ने तत्कालीन स्वास्थ्य मंत्री गुलाम नबी आजाद को रिपोर्ट किया कि मामले में बीएस आनंद को गलत ढंग से एक्सटेंशन दिया गया है। जांच का ही परिणाम रहा कि बीएस आनंद को तत्काल प्रभाव से टर्मिनेट कर दिया गया।

20 जून 2017 में इंडिया टुडे की एक खबर में यह दावा किया गया है कि एम्स के चीफ विजिलेंस कमिश्नर संजीव चतुर्वेदी ने पाया कि बीएस आनंद और विनीत चौधरी के बीच साठगांठ थी। चतुर्वेदी की रिपोर्ट के आधार पर ही तत्कालीन स्वास्थ्य मंत्री गुलाम नबी आजाद ने जनवरी 2014 में मामले को सीबीआई जांच के हवाले कर दिया।

किन वजहों से फर्जीवाड़ा हुआ उजागर?

सवाल उठता है कि मामले में फर्जीवाड़ा कैसे उजागर हुआ। इंडिया टुडे की ख़बर के मुताबिक बीएस आनंद और विनीत चौधरी सामूहिक रूप से एम्स में घटिया निर्माण के लिए उत्तरदायी थे। जिनमें कनवर्जन ब्लॉक, अंडरग्राउंड मल्टीलेवल पार्किंग और पोर्टा कैबिन की खरीददारी शामिल थी। इंडिया टुडे को दिए बयान में एक आरटीआई एक्टिविस्ट ने आरोप लगाए कि 50 करोड़ की लागत से बना पार्किंग एक बरसात भी झेल नहीं पाया और धराशाई हो गया।

इसके बाद ही साल 2012 में इस मामले में जांच शुरू हुई।

सीबीआई की जांच और पल्ला झाड़ना 

दिसंबर 2014 की जांच रिपोर्ट में सीबीआई ने विनीत चौधरी को बीएस आनंद को गैर-कानूनी तरीके से एक्सटेंशन देने और केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय को गुमराह करने का आरोपी माना। सीबीआई ने उस दौरान चौधरी के खिलाफ विभागीय कार्रवाई की सिफारिश भी की थी।

लेकिन, मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक इस केस में सीबीआई ने बाद में साक्ष्यों को लेकर संबंधित विभाग पर सहयोग नहीं देने का आरोप लगाया और अपना पल्ला झाड़ लिया।

संसदीय जांच

मामला इतना हाईप्रोफाइल स्तर पर था कि इस में संसदीय जांच भी हुई। अगस्त 2015 में इस पर जांच कमेटी ने माना कि देश के उच्चतम मेडिकल संस्थान में हुए फर्जीवाड़े को रोकने में स्वास्थ्य मंत्रालय नाकाम रहा है।

मामले में लीपापोती की आशंका

मई 2014 से लेकर अगस्त 2014 के बीच स्वास्थ्य मंत्रालय में काफी गहमा-गहमी का माहौल रहा। तत्कालीन स्वास्थ्य मंत्री डॉक्टर हर्षवर्धन ने बीएस आनंद को गैर-कानूनी तरीके से कार्यकाल में इजाफा देने पर विनीत चौधरी के खिलाफ जांच को आगे बढ़ाने और दंड प्रक्रिया में लाने की सिफारिश की। लेकिन, इसके बाद ही डॉक्टर हर्षवर्धन को स्वास्थ्य मंत्री के पद से हटा दिया गया।

मीडिया रिपोर्ट्स में जब मामला लगातार हॉट केक बनता गया तब मई 2015 में जेपी नड्डा ने मामले को आईएएस की रेगुलेटरीज अथॉरिटी DoPT को केस सौंपने की बात कही। लेकिन, बाद में मई 2017 को हाईकोर्ट में एक एफिडेविट फाइल कर स्वास्थ्य मंत्रालय ने चौधरी को क्लिन चिट दे दी। अपने एफिडेविट में सरकार ने विनीत चौधरी को भ्रष्टाचार के सभी आरोपों से मुक्त बताया।

मामले में विपक्षी समूह का तर्क

एम्स में हुई अनियमितता के खिलाफ हाईकोर्ट में केस लड़ रहे वकील प्रशांत भूषण ने भी माना कि मामले में बीएस चौहान के कार्यकाल को बढ़ाना दर्शाता है कि विनीत चौधरी भी भ्रष्टाचार के इस नेक्सस में हिस्सेदार थे। प्रशांत भूषण ने इस मामले में लीपापोती के लिए सीधे तौर पर तत्कालीन स्वास्थ्य मंत्री जेपी नड्डा को भी घेरे में लिया।

इस मामले में देश की तमाम विपक्षी पार्टियों ने जांच को प्रभावित करने और मामले में लीपापोती के आरोप लगाए।

भ्रष्टाचार के खिलाफ कहां है जीरो टॉलरेंस

वैसे तो देश के 18 राज्यों में बीजेपी की सरकार है और सभी सरकारों का एक ही मंत्र है जो पीएम मोदी ने दिया है, भ्रष्टाचार के खिलाफ जीरो टॉलरेंस। लेकिन, जिस तरह से हिमाचल में नौकरशाहों के नियुक्ति हो रही है वह उस दावे पर सवाल खड़े करता है। पूरा मामला जानने के बाद कोई भी अंदाजा लगा सकता है कि हिमाचल के नव-नियुक्त चीफ सेक्रेटरी की भूमिका एम्स के 7 हजार करोड़ रुपये के फर्जीवाड़े में संदिग्ध है या नहीं।

विनीत चौधरी को कटघरे में खड़ा करना इसलिए भी लाजमी है क्योंकि, जिस बुनियाद पर बीजेपी ने कांग्रेस की मुखालफत कर सत्ता हासिल की है, अगर वह उसी बुनियाद पर सरकार चलाती है तो यह जनता के साथ धोखा होगा।