पहाड़ी प्रदेश हिमाचल जिसे देवभूमि के नाम से भी जाना जाता है. इस पहाड़ी राज्य में ऐसे स्थल हैं जो विश्व भर में अपना एक अलग स्थान रखते हैं. इन्हीं स्थानों में एक गांव ऐसा है जिसे ‘हेरिटेज’ का दर्जा प्राप्त है. जी हां हम हिमाचल प्रदेश के धरोहर गांव परागपुर-गरली की बात कर रहे हैं. जो आधुनिक और पुरातन काष्ठकला एवं व्यापार का आकर्षक केन्द्र रहा है.
गांव में है 200 साल पुराना तालाब
‘ब्रिटिश काल’ के दौरान अस्तित्व में आए गरली-परागपुर में वर्षों पुरानी इमारतें बुटेल नौण, तालाब, जजिस कोर्ट, प्राचीन राधा-कृष्ण मंदिर जैसी कई अदभुत चीजें देखने वाली हैं. गरली में गहरा तालाब 150 से 200 साल पुराना बताया जाता है जो ज़मीन में पानी के स्तर को बनाए रखता है. जिसमें अब मछलियां भी लाकर डाली गई हैं. पुराने गांव की तंग गालियां, आलीशान हवेलियां, मिस्ट्री हाउस गांव के आंगन में बने गहरे कुंए प्राचीन ग्रामीण परिवेश की याद दिलाते हैं. ब्रिटिश काल में विकसित हुए इस गांव का समृद्ध इतिहास और संस्कृति ही इसका अक्स है.
अफ़सोस की बात है कि वर्षों पुरानी इस समृद्ध इतिहास को सहेजने के अभी तक ईमानदार प्रयास नहीं हुए. अफ़ग़ान, राजस्थान और मध्यप्रदेश से उस वक़्त आलीशान मकानों की लकड़ी और अन्य सामान मंगवाया गया. लेकिन वक़्त के थपेड़ों ने सब कुछ नेस्तनाबूद कर दिया. गांव के कई घर खंडहर बन गए हैं. लकड़ी की नक्कासी अब डराती है. कभी ज़िंदा रही ये बस्ती वीरान और डरावनी लगती है. गांव की गलियां सुनी सुनी हैं, मकानों के अंदर चमगादड़ बसते हैं.
150 साल पहले समृद्ध हुआ करता था गांव
डेढ़ सौ साल पहले जो गांव समृद्ध हुआ करता था. इसी गांव से हिमाचल प्रदेश के गांवों को राशन और अन्य सामान जाता था. यानी कि ये गांव व्यापार का मुख्य केंद्र था. गांव में बर्तन की दुकान करने वाले 70 वर्षीय सुभाष चंद शर्मा कहते हैं, “ये गांव मुख्यतः सूद परिवारों का हुआ करता था. लेकिन काम धंधे के विस्तार के लिए यहां के लोग शिमला, दिल्ली, मुंबई और अन्य शहरों में पलायन कर गए. शहरों की चकाचौंध से कइयों ने तो मुड़कर इस गांव की तरफ नहीं देखा, नतीज़ा गांव खंडहर बनता गया. अब जो लोग यहां व्यापार कर रहे हैं वह यहां के नहीं बल्कि दूर पार के हैं.”
गांव पर बॉलीवुड की भी नजर
यही नहीं इन धरोहर गांवों पर अब बॉलीवुड की नजर भी पड़ चुकी है. पिछले कुछ समय में यहां कई फिल्मों, विज्ञापनों और एलबम की शूटिंग हुई है. अमीर खान तक इस गांव में रह चुके हैं. जिसका श्रेय मेला राम सूद को जाता है जिनके परिवार ने अपने पुराने मकान को आलीशान हॉटेल में तब्दील कर दिया है.
हेरिटेज का दर्जा देने के बाद भूली सरकार
गौरतलब है कि प्रदेश सरकार ने 1991 की पर्यटन नीति के आधार पर 9 दिसंबर 1997 को परागपुर और उसके बाद वर्ष 2002 में गरली को धरोहर गांव का दर्जा प्रदान किया. 2002 में धरोहर के संरक्षण को विशेष क्षेत्र विकास प्राधिकरण का दर्जा दिया गया. ताकि यहां बनने वाले भवन धरोहर के अनुरूप बनें. लेकिन अफसोस की बात है कि हेरिटेज का दर्जा देने का बाद सरकार ने कभी इस गांव की ओर मुड़कर नहीं देखा. प्रदेश में चाहे भाजपा की सरकार रही हो या कांग्रेस की दोनों ही सरकारों ने इस गांव की अनदेखी की. जिसके परिणामस्वरूप आज ये गांव खंडहर में बदल रहा है.