ललित खजूरिया।। न्यू ईयर आते ही लोग गर्लफ्रेंड या बीबी (दबाव में ही सही) छुट्टियां मनाते दिखाई देते हैं। लेकिन, कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष राहुल गांधी उन गिने-चुने लोगों में से हैं, जो न्यू-ईयर की छुट्टियां अपनी मां के साथ गोवा में सेलिब्रेट कर रहे हैं। राहुल गांधी का अपनी मां के साथ छुट्टी वाली तस्वीरें देश के सिंगल लड़कों को आत्मबल देने का काम कर रही है। अक्सर कॉस्मोपोलिटन जैसी मैग्जीनों में न्यू-ईयर सेलिब्रेशन के प्लान में पार्टनर को तरजीह दी जाती है। लेकिन, राहुल ने एक ऐसा भावुक पक्ष अनजाने में पेश कर दिया है, जिसने देश के करोड़ों सिंगल लड़कों को मुरीद बना दिया है।
मां के प्रति असीम प्रेम तो पीएम नरेंद्र मोदी में भी दिखाई देता है। अक्सर उनकी भी अपनी मां के साथ तस्वीरें लोगों को भावुक करती हैं। हालांकि, पीएम न्यू-ईयर पर नहीं बल्कि जन्मदिन पर अपनी मां का आशीर्वाद जरूर लेते हैं। कुल मिलाकर राजनेताओं के यह पक्ष हर किसी को प्रेरणा और सुकून देता है।
लेकिन, राहुल गांधी का न्यू-ईयर पर मां के साथ छुट्टी ने उन संस्कारी जमातों को भी ठेंगा दिखा दिया है जो हर मामले में वेस्टर्न बनाम सनातनी के चश्में से उत्सवों को देखते हैं। राहुल के व्यक्तित्व का यह पक्ष किसी को भी आकर्षित कर सकता है। फर्ज़ के तौर पर मैं खुद राहुल गांधी के राजनीतिक मामलों का आलोचक रहा हूं। लेकिन, उनके व्यक्तित्व और ख़ासकर हाल के दिनों में राजनीतिक समझ ने कुछ हद कायल जरूर बनाया है।
पिछला साल राहुल गांधी के लिए काफी उतार-चढ़ाव भरा रहा। गुजरात और हिमाचल चुनाव में कांग्रेस की शिकस्त के बावजूद राहुल गांधी के नेतृत्व को मीडिया ने गंभीरता से लिया। ख़ासकर गुजरात चुनाव में कांग्रेस की परफॉर्मेंस ने पार्टी के भीतर एक तरह से जान डालने की कोशिश जरूर की है। हालांकि, हार के बावजूद जिस एनर्जी से राहुल गांधी एक जिम्मेदार विपक्ष की भूमिका अदा कर रहे है, वह काबिले तारीफ है।
अब चुनावी परिश्रम से वक़्त पाकर राहुल नए साल में अपनी मां के साथ छुट्टियां मना रहे हैं, जरूरी है कि राजनीतिक द्वंद से उठकर आदमी निजी जीवन को भी रसमय बनाए। राजनेताओं का भी अपना निजी जीवन होता है। अच्छी और सेहतमंद राजनीति के लिए जरूरी है कि नेता भी मानसिक रूप से सेहतमंद रहे हैं।
मनोवैज्ञानिक भी बताते हैं कि छुट्टियां मेंटल हेल्थ के लिए सबसे बड़ा हथियार हैं, लेकिन अगर छुट्टियां पैरेंट्स के साथ बीते तो सोने पर सुहागा है। क्योंकि, पैरेंट्स डिमांड नहीं करते बल्कि पूरी करते हैं।
(उपरोक्त लेख सीनियर जर्नलिस्ट ललित खजूरिया के व्यक्तिगत विचार हैं।)