शिमला: शिमला में निजी स्कूल खुलते ही किताबों और वर्दी की दुकानों में मारामारी नजर आ रही है। निजी स्कूलों के खुलने के साथ ही स्कूलों की दुकानों की मौज लग गई है। किताबों की दुकानों से लेकर वर्दी और जूतों की दुकानों में अभिभावकों की भीड़ नज़र आ रही है। अभिभावकों की मजबूरी ये है कि उनको स्कूलों द्वारा चयनित दुकानों से ही कपड़े और किताबें ख़रीदनी पड़ती हैं। ऐसे में लूट होना स्वभाविक है। किताबों में प्रिंट रेट से एक पैसा कम नहीं किया जाता है। वर्दी और जूतों की खरीद में तो मनमानी आसमान पर है।
किताबों की दुकान में खरीददारी करने आई सुमन का कहना है कि उनके स्कूल द्वारा एक ही दुकान किताबों के लिए चयनित की गई है। एक तो किताबें महंगी मिल रही हैं। कुछ किताबें मिली नहीं अब ये किताबें कब मिलेंगी कुछ पता नहीं। अगर एक जैसा पाठ्यक्रम हो तो किसी भी दुकान से किताबे खरीदी जा सकती हैं। ये स्कूलों की खुली लूट है जिसको कौन रोकेगा ये सबसे बड़ा सवाल है।
वर्दी की दुकान में खरीददारी करने वाले रमेश चंद ने कहा कि चयनित दुकानों से वर्दी खरीदना मज़बूरी है। क्योंकि वर्दी में स्कूल का बैच लगा हुआ है। यहाँ सामान्य दुकानों के मुकाबले दो -तीन गुणा दाम है। बच्चों के लिए वर्दी जरूरी है इसलिए लेनी पड़ेगी। फ़ीस से लेकर किताब वर्दी पर स्कूलों की मनमानी जारी है। सरकार ने भी इसको लेकर हाथ खड़े कर दिए है। ऐसे में उम्मीद भी करें तो किससे? सरकारी स्कूलों में मूलभूत ढांचे की खामियां है इसलिए निज़ी स्कूलों में बच्चों को पढ़ाना मज़बूरी है।