शिमला की चौपाल रेंज में फॉरेस्ट गार्ड रवि शर्मा का वीडियो आने के बाद अब पुलिस हरकत में आई है। पुलिस ने देवदार के तेल की तस्करी करने वालों के खिलाफ एफआईआर दर्ज की है जिसमें एक आरोपी रामानंद का नामजद भी किया गया है। इस मामले में रवि ने अधिकारियों को कार्यशैली पर भी सवाल उठाए थे, जिसपर वन मंत्री गोविंद सिंह ने अहम फैसला लिया है।
2 अधिकारियों को सस्पेंड करने के निर्देश जारी
इस मामले में वन मंत्री गोविंद ठाकुर ने वन विभाग का अतिरिक्त कार्यभार देख रहे एसीएस श्रीकांत बाल्दी को निर्देश दिए हैं कि आरओ और डिप्टी रेंजर को तुरंत प्रभाव से पद से हटाया जाए।
चौपाल का रहने वाला है आरोपी
जानकारी के मुताबिक, आरोपी रामानंद इस अवैध करोबार में काफी समय सक्रिय था। लिहाजा पुलिस पूरी जांच अपने स्तर पर करेगी और उसके बाद कोई एक्शन लिया जाएगा। आरोपी चौपाल न्यूनल गांव का रहने वाला है।
डीएफओ चौपाल एमएस चंदेल ने कहा कि वन रक्षकों को जो सुरक्षा मिलनी चाहिए, वह नहीं हासिल हो रही है। रवि के साथ 5 अन्य फॉरेस्ट गार्ड भी साथ थे, लेकिन बर्फबारी के चलते टीम को दिक्कतें आई होंगी। सिडार का अवैध तेल निकालने को लेकर शिकायतें आई थी, जिसके बाद ही हमारी टीम जंगल में पहुंची थी। वहां माफिया से 180 लीटर सिडार ऑयल बरामद हुए थे।
गौरतलब है कि गत मंगलवार को हुई बर्फबारी के दौरान वन रक्षक रवि शर्मा ने अपनी टीम के साथ क्यारी सरां के जंगल का दौरा किया। फॉरेस्ट बीट चौपाल को पहले से ही सूचना मिली थी कि इस जंगल में देवदार के पेड़ों से तेल निकालने का अवैध धंधा चल रहा है। इसके बाद ही फॉरेस्ट गार्ड रवि शर्मा के नेतृत्व में 6 वन रक्षकों की टीम को माफिया के खिलाफ कार्रवाई करने का जिम्मा सौंपा गया।
जब टीम वहां पहुंची तो उन्होंने रंगे हाथ आरोपी को पकड़ना चाहा, लेकिन आरोपी भाग निकला। इसके बाद उन्होंने ऑयल की इस खेप को वहां छोड़ना उचित नहीं समझा और विभाग को सूचित किया। 6 घंटे बीत जाने का बाद जब कोई मदद के लिए नहीं आया तो रवि ने एक वीडियो बनाया, जिसमें उसने उच्च अधिकारियों को पोल खोल दी। ये वीडियो देंखे…
करसोग के जंगल में वन माफिया के खिलाफ जान गंवाने वाले होशियार सिंह के बाद चौपाल में रवि शर्मा की दिलेरी माफिया के खिलाफ दूसरा सबक है। होशियार ने अपनी डायरी में लिखा था कि अवैध कटान की शिकायत के बाद भी अफसर मिले हुए हैं। अब रवि शर्मा ने वीडियो में कहा है कि आरओ को बताया, लेकिन कोई कार्रवाई नहीं की। इन घटनाओं से वन माफिया से वन विभाग के अफसरों की मिलीभगत की आशंकाएं सही साबित हो रही हैं।