<p>पहाड़ी प्रदेश हिमाचल में मौसम कब कहर ढा दे इसका अंदाजा नहीं लगाया जा सकता है। मॉनसून के मौसम में तो हिमाचल में हमेशा ख़तरा बना रहता है। नतीज़तन बरसात के मौसम में अलर्ट की स्थिति बनी रहती है। हिमाचल में अभी मौसम की सटीक जानकारी का आभाव है। जिसके चलते मौसम कई बार हिमाचल पर आफ़त बन जाता है। हिमाचल प्रदेश में भारी बारिश व बादल फटने की बढ़ती घटनाओं को देखते हुए मौसम विभाग ने शिमला के कुफरी, चंबा के डल्हौजी तथा कुल्लू में डॉप्लर रडार लगाने की कवायद तेज कर दी है। जिसका सारा मसौदा भी तैयार कर लिया गया है। उम्मीद की जा रही है कि जल्द ही हिमाचल की तीन जगहों पर डॉप्लर रडार लग जाएंगे।</p>
<p>इस बारे में जानकारी देते हुए आपदा प्रबंधन के निदेशक डीसी राणा ने बताया कि हिमाचल में मौसम का सितम कब भारी पड़ जाए कुछ कहा नहीं जा सकता। इसलिए हिमाचल में तीन डॉप्लर रडार लगाने को मंजूरी मिली है जिस पर जल्द काम शुरू किया जाएगा। इन तीनों रडारों की रेंज करीब सौ किलोमीटर की होगी। इन राडार के लगने के बाद बागवानों व किसानों को जहां मौसम का पूर्वानुमान पहले ही सटीक जानकारी मिल जाएगा। वहीं, सैलानियों और कारोबारियों को भी राहत मिलेगी। सैलानी मौसम के मिजाज के हिसाब से शिमला अथवा कुल्लू मनाली घूमने का कार्यक्रम तय कर सकेंगे।</p>
<p>गौरतलब है कि बादलों से संबंधित सूचनाओं के लिए अभी हिमाचल को मौसम विज्ञान केन्द्र, दिल्ली और पटियाला पर आश्रित रहना पड़ता है। इन केन्द्रों से प्रसारित सूचना के आधार पर ही यहां बारिश से सम्बन्धित अलर्ट जारी किए जाते हैं। यहां समस्या ये है कि इसमें हिमाचल की पूरी स्थिति कवर नहीं कर पाती हैं। बादल फटने की घटना का पूर्वानुमान लगाना बहुत मुश्किल होता हैं। मौसम वैज्ञानिकों के अनुसार बादल फटने की घटना का अनुमान नाउकास्ट (NOWCAST) पद्धति के द्वारा ऐसा होने के कुछ ही घंटों पहले लगाया जा सकता है। इसी मक़सद से भारत में पहला डॉप्लर वेदर रडार चेन्नई में 2005 में लगाया गया था। देश में बड़ी संख्या में डॉप्लर वेदर रडार लगाने की पहल मिनिस्ट्री ऑफ अर्थ साइंसेज द्वारा वर्ष 2007 में की गई थी। अभी तक देश मे लगभग ढाई दर्जन डॉप्लर राडार लग चुके हैं। हिमाचल को भी इसका इंतजार है।</p>
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