हिमाचल

300 साल पुराना रामपुर बुशहर अंतरराष्ट्रीय लवी मेला हुआ सम्पन्न

देव भूमि हिमाचल प्रदेश अपनी सांस्कृतिक धरोहर, धर्मिक व रंग-बरंगे पर्वों व मेलों के लिए जाना जाता है. इसी तरह का एक मेला रामपुर बुशहर का अंतरराष्ट्रीय लवी मेला है. जो आज भी लोगों के आकर्षण बना हुआ है.
कोरोना की वजह से दो साल इस मेले को नही मनाया गया. 2019 के बाद इस साल लवी मेले को मनाया गया. लवी मेला एक व्यापारिक मेला है, जो तीन सौ साल पुराना है. 11 नवंबर को शुरू हुए इस मेले का आज विधिवत रूप से समापन हो गया. “लवी” शब्द लोई का एक अपभ्रंश है. “लोई” ऊन से बने कपड़े को कहा जाता है. जिसे पहाड़ के लोग ठंड से बचने के लिए पहनते एवं ओढ़ते हैं.
मेले के बारे में बताया जाता है कि बुशहर के राजा केहर सिंह और तिब्बती सेनापति की संधि हुई और दोनों तरफ के व्यापारियों को छूट दी गई. 1911 में तत्कालीन राजा केहर सिंह के समय से मेले में तिब्बत, अफगानिस्तान के व्यापारी यहां कारोबार करने आते थे. यहां के व्यापारी ड्राई फ्रूट, ऊन, पशमीना और पशुओं सहित घोड़े लेकर रामपुर पहुंचते थे.
इसके बदले में रामपुर से नमक, गुड़ सहित अन्य राशन लेकर जाते थे. नमक मंडी जिला के गुम्मा से यहां लाया जाता था. करंसी का इस्तेमाल उस वक़्त नहीं किया जाता था.यह केवल व्यापारिक मेला ही नहीं, बल्कि इस मेले में हिमाचल प्रदेश की पुरानी संस्कृति की विशेष झलक दिखाई देती है.
17वीं शताब्दी से शुरू हुए लवी मेले की आज भी अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपनी अलग पहचान है. इस व्यापारिक मेले का प्रदेश की आर्थिक प्रगति में अहम योगदान माना जाता है. पुराने समय से लवी मेले में ऊन, पश्मीना, हथकरघा, ड्राई फ्रूट, चिलगोजा और स्थानीय उत्पाद की भारत ही नहीं विदेशों में भी मांग थी जो अब भी है. भारत व तिब्बत के बीच व्यापार के प्रतीक अंतराष्ट्रीय लवी मेल में चार दिनों तक देश-विदेश के लोग व्यापार करने एवं खरीदारी करने के लिए यहां आते हैं.
कहा जाता है कि बुशहर रियासत के तिब्बत के साथ अच्छे व्यापारिक संबंध थे. ये व्यापारिक संबंध इतने सुदृढ़ हो गए कि व्यापार के आदान -प्रदान के लिए लवी मेला शुरू हो गया. आज भी यहां पर पारंपरिक वाद्य यंत्रों की खरीद फरोख्त, ऊनी वस्त्रों, ड्राई फ्रूट्स, जड़ी-बूटियों की खरीद प्रमुख है.
शिमला से करीब 130 किलामीटर दूर रामपुर बुशहर में हर वर्ष 11 नवंबर से अंतर्राष्ट्रीय लवी मेला आयोजित किया जाता है. उत्तर भारत का यह प्रमुख व्यापारिक मेला ग्रामीण दस्तकारों के रोजगार और आर्थिक मजबूती का केंद्र बना है.
मेले के दौरान हस्तनिर्मित वस्त्रों, शॉल, पट्टू, पट्टी, टोपी, मफलर, खारचे आदि की मांग रहती है. वाद्य यंत्रों में विशेष कर ढोल-नगाड़े, करनाले, व अन्य वस्तुयें भी मेले में खूब बिकते है. अब तो लोग स्थानीय खाद्य उत्पादों को भी मेले में बेचकर अच्छी कमाई करते हैं. 1983 में जब वीरभद्र सिंह प्रदेश के के पहली बार मुख्यमंत्री बने तो 1985 में लवी को अंतरराष्ट्रीय मेला घोषित किया गया.
Kritika

Recent Posts

धर्मशाला का टिकट तय: बागियों के सरगना सुधीर के आगे सीएम ने अपने चहेते जग्‍गी पर खेला दांव

धर्मशाला: राज्‍यसभा चुनाव में सत्‍तारूढ़ कांग्रेस को घुटने पर लाने में बागियों के सरगना की…

9 hours ago

नगरोटा बगवां में कांग्रेस उम्मीदवार आनंद शर्मा के लिए RS बाली की बड़ी बैठक

नगरोटा बगवां के विधायक आर एस बाली ने कांगड़ा चंबा लोकसभा के प्रत्याशी आनंद शर्मा…

9 hours ago

10 मई से शिमला में 11वीं माउंटेन साइकिलिंग रेस, जर्सी लांचिंग पर पहुंचीं गुल पनाग

हस्तपा 10 से 12 मई तक शिमला में 11वीं एमटीबी साइकिल रेस का अयोजन कर…

10 hours ago

केंद्र सरकार ने अग्निवीर योजना लाकर सेना और युवाओं का अपमान किया: शर्मा

नगरोटा बगवां पहुंचे कांगड़ा-चंबा से लोकसभा उम्मीदवार आनंद शर्मा ने कहा भारत बहुभाषी ,बहु धर्मी…

10 hours ago

लोकसभा चुनाव-2024 में अधिसूचना तक 2019 से अधिक जब्तियां

मुख्य निर्वाचन अधिकारी, मनीष गर्ग ने आज यहां बताया कि वर्ष 2019 में हुए लोकसभा…

12 hours ago

मुख्य निर्वाचन अधिकारी ने मतदाता जागरूकता संदेश वाली साइक्लिंग जर्सी की जारी

साइक्लिंग अभियान के माध्यम से वोट का महत्व बताएंगे स्टेट इलेक्शन आइकॉन जसप्रीत पॉल मुख्य…

12 hours ago