Himachal medicines fail quality standards: हिमाचल प्रदेश में बनीं 38 दवाएं, जो संक्रमण, बुखार, बीपी, और अन्य बीमारियों के उपचार में इस्तेमाल होती हैं, मानकों पर खरी नहीं उतरीं। राज्य ड्रग नियंत्रक और केंद्रीय औषधि नियंत्रण संगठन द्वारा अक्तूबर में देशभर से लिए गए सैंपल में यह गड़बड़ी सामने आई है। इनमें हिमाचल की कई प्रसिद्ध दवा कंपनियों की दवाएं शामिल हैं।
झाड़माजरी की डॉक्सीन कंपनी की टॉन्सिल की दवा “सेपकेम,” सोलन की चिरोस फार्मा की संक्रमण की दवा “सेफोप्रोक्स,” और भटोली कलां की टास मेड कंपनी की मिर्गी की दवा “डिवालप्रोक्स” के तीन सैंपल मानकों पर सही नहीं पाए गए। इसके अलावा, नालागढ़ की सैणी माजरा स्थित थियोन फार्मास्युटिकल कंपनी की जीवाणु संक्रमण की दवा, बद्दी की स्काई मेप फार्मास्युटिकल की बुखार की दवा, और सुबाथू की जेएम लैबोरेट्री की बीपी की दवा भी फेल हुई हैं।
राज्य ड्रग नियंत्रक मनीष कपूर ने बताया कि इन दवाओं के मानकों पर सही न होने की वजह से संबंधित कंपनियों को नोटिस जारी कर दिया गया है। लाइसेंस रद्द करने की प्रक्रिया शुरू हो चुकी है और इन दवाओं का स्टॉक बाजार से वापस मंगवाया जा रहा है।
केंद्र सरकार द्वारा किए गए निरीक्षण में हिमाचल की 24 अन्य दवाएं भी फेल पाई गईं। इनमें कालाअंब स्थित विद्याशाला कंपनी की कोलेस्ट्रोल की दवा “रोसूवाईस्टोरिन,” बद्दी की शिवा बायोटेक कंपनी की उल्टी की दवा, और मधाला स्थित मेरिन मेडिकेयर कंपनी की सूजन की दवा “एसोक्लोफेनाक” शामिल हैं।
हिमाचल प्रदेश को फार्मा हब के रूप में जाना जाता है, लेकिन लगातार बढ़ती इन गड़बड़ियों ने राज्य की दवा निर्माण प्रक्रिया पर सवाल खड़े कर दिए हैं।
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