हरी भरी घाटियों से घिरा हिमाचल प्रदेश का ऐसा गांव जो अब पूरी तरह मिट्टी में तबदील हो चुका है. आखिर रातों-रात ऐसा हुआ क्या होगा कि अब उस गांव के मलबे पर JCB मशीनों का शोर गूंज रहा है. और अगर कुछ सुनाई दे रहा है तो रोने की गूंज और सिसकियां. गांव के लापता लोगों की तलाश चल रही है. शायद कुछ चमत्कार हो जाए.
मलबे से कोई जिंदा निकल आए, यह उम्मीद लोगों में अभी भी जिंदा है. हिमाचल का समेज गांव जो शिमला और कुल्लू जिले की सीमा पर स्थित है. 31 जुलाई को आई बाढ़ में इस गांव का एक घर छोड़कर बाकी सभी घर बह गए. समेज गांव के लापता 36 लोगों में से 5-6 लोगों के शव बरामद हुए लेकिन बाकी लोगों का अब तक कुछ पता नहीं चला सका है. वो कहां है कैसे है किसी को कुछ पता नहीं.
इस बाढ़ का शिकार कल्पना केदारटा और उनके दो बच्चे बेटी अक्षिता सात साल और चार साल का बेटा अद्विक भी हुए। कल्पना की बेटी चौथी कक्षा और बेटा पहली कक्षा में पढ़ता था. जानकारी के अनुसार कल्पना एक पावर प्रोजेक्ट में अकाउंटेंट के तौर पर कार्य करती थी और उनका ट्रांसफर हो गया था. वो कुछ दिनों में समेज गांव छोड़ने वाली थी. लेकिन उससे पहले ही उनका परिवार उजड़ गया. इस हादसे में कल्पना के पति जय सिंह ही बचे हैं.
दरअसल किसी काम के चलते उस रात जय सिंह गांव में नहीं थे. जिसके कारण उनकी जान बच गई. जय सिंह बस यही दुआ कर रहे हैं कि कुछ चमत्कार हो जाए और उनका परिवार वापस उन्हें मिल जाए. लेकिन, प्रकृति ने उनके परिवार को बर्दाश्त करने की बजाय बाढ़ की चपेट में ले लिया।
समेज गांव की कल्पना ने हादसे की रात से एक दिन पहले अपने इंस्टाग्राम पर एक रील शेयर की थी और उसमें कहा था – ये मत सोचिए कि काम कर लेने से मौत नहीं आती.. अगर, अगर आ गई तो… मैं इतना बड़ा रिस्क कैसे ले लूं अपनी जान के साथ… अगर मैंने काम किया और मौत आ गई तो फिर…मैंने तो अभी जिंदगी में कुछ भी नहीं देखा अभी तो…” इस रील के इंस्टाग्राम पर पोस्ट करने के कुछ घंटों के बाद कल्पना केदारटा अपने दो बच्चों के साथ बादल फटने से आई बढ़ में बह गई।
इस परिवार में सिर्फ कल्पना के पति ही जिंदा बच पाए. रामपुर में बादल फटने की घटना में कम से कम 6 लोगों की मौत के बाद समेज गांव में राहत और बचाव कार्य अभी भी जारी है।