शिमला में निज़ी स्कूलों की मनमानी रुकने का नाम नहीं ले रही है। अब तो सरकारी स्कूल शिक्षा विभाग के आदेशों को भी धत्ता दिखाकर गुंडागर्दी पर उतर आए हैं। मशीनरी स्कूलों की दादागिरी तो पहले से ही जगजाहिर है। ये स्कूल तो सरकार की कभी सुनते नहीं हैं। लेकिन शिमला के दूसरे स्कूलों डीएवी, शिमला पब्लिक स्कूल और दयानंद पब्लिक स्कूल ने सरकारी आदेशों की मनाही के बाबजूद फीस में इज़ाफ़ा कर दिया है। इन स्कूलों ने 5000 हज़ार से ज़्यादा तक सालाना फ़ीस बढ़ा दी है। जिससे अभिभावक खासे नाराज़ हैं। अभिभावकों का कहना है कि हर साल ये स्कूल अपनी फीसें बढ़ा देते हैं। इनको पूछने वाला कोई नहीं है। जब इसके ख़िलाफ़ कभी आवाज़ उठाओ तो ये स्कूल बच्चों के साथ भेदभाव करते हैं।
इस बार शिक्षा विभाग ने स्कूलों द्वारा मनमानी फ़ीस बढ़ाने को लेकर स्कूलों के ख़िलाफ़ कार्यवाही की बात कही थी लेकिन उसका भी कोई असर नहीं हुआ। इन स्कूलों ने आदेशों के बाद पहले से ज़्यादा फ़ीस बढ़ा दी है। बच्चों को सुविधाओं के नाम पर कुछ नहीं मिल रहा है। शिक्षक हर सेशन में बदल दिए जाते हैं क्योंकि उनको बहुत कम वेतन दिया जाता है। अभिभावकों का कहना है कि इस मर्तबा सबसे ज्यादा फ़ीस शिमला पब्लिक स्कूल ने बढ़ाई है। जो कि फीस बुक में साफ दिख रहा है। लेकिन शिक्षा विभाग है कि कुम्भकर्णीय नींद सोया हुआ है जिसके आदेश सिर्फ़ कागज़ों तक ही सीमित है।
इन स्कूलों में तीन माह तक सर्दियों की छुट्टियां रहती हैं। क़ायदे से स्कूल छुट्टियों की फ़ीस नहीं ले सकते है। लेकिन यहां भी स्कूलों की दादागिरी अभिभावकों पर भारी पड़ रही है। ये स्कूल छुट्टियों की भी एडवांस में ही फ़ीस बसूल रहे हैं। लेकिन इनको पूछने वाला कोई नहीं। वर्दियों से लेकर कॉपी किताबों में कमिश्नन का खेल धड़ल्ले से चल रहा है। बाबजुद इसके किसी पर कोई चेक नहीं। प्रसाशन से लेकर सरकार सब जानती है लेकिन इन पर कार्यवाही आज तक नहीं हुई। सवाल यही उठता है या तो व्यवस्था ने निज़ी स्कूलों के आगे घुटने टेक दिए हैं या फ़िर यहां भी कमिश्नन का गड़बड़झाला है?