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रावण की तपोभूमि है बैजनाथ, यहां नहीं जलाया जाता है रावण का पुतला, जिसने रावण जलाया वह खुद ही जल गया

पी.चंद |

आज समूचे देश में दशहरा पर्व मनाया जा रहा है। कोरोना काल चलते भले प्रतीक रूप में ही सही  रावण, कुम्भकर्ण और मेघनाथ के पुतले जलाएं जाएंगे। लेकिन एक ऐसी जगह भी है जहां रावण नहीं जलाया जाता है। जी हां हम बात कर रहे है शिव धाम बैजनाथ की, शिव मंदिर बैजनाथ को रावण की तपोभूमि के रूप में जाना जाता है। यही वजह है कि यहां पिछले 4 दशकों से दशहरा तक नहीं मनाया जाता है।

माना जाता है कि बैजनाथ मंदिर में जो भगवान शिव का शिवलिंग है उसे रावण यहां लाया था। कहा जाता है कि हिमालय पर सदियों तक तपस्या करने और 9 बार अपना शीश काटने के बाद भगवान शिव ने रावण को इसी जगह दर्शन दिए और वरदान मांगने को कहा था। बैजनाथ को वैद्यनाथ के नाम से भी जाना जाता है। मंदिर से कुछ दूरी पर पपरोला जाने वाले पैदल मार्ग पर रावण का मंदिर है और रावण के पैरों के निशान भी मौजूद है।

ऐसा माना जाता है कि जो  शिवलिंग मंदिर के गर्भगृह में मौजूद है, उस शिवलिंग को रावण घोर तप करके प्राप्त कर लंका ले जा रहा था। भगवान शिव ने कहा था कि इस शिवलिंग को वह रास्ते मे न रखे और लंका पहुंचा दे तो वह अजय हो जाएगा।लेकिन बैजनाथ  पहुंचने पर रावण को लघुशंका लगी। रावण ने लघुशंका के लिए इस शिवलिंग को एक चरवाहे को पकड़ा दिया था। कहा जाता है कि काफ़ी देर तक रावण के न लौटने पर इस चरवाहे ने इस शिवलिंग को यहीं जमीन पर रख दिया उसी समय यह शिवलिंग यहीं स्थापित हो गया।

बैजनाथ बाज़ार में लगभग 800 व्यवसायिक संस्थान हैं लेकिन एक भी दुकान सुनार की नहीं है।

दुकानदार कहते है कि जिसने भी यहां सोने की दुकान खोली उसका सोना काला हो जाता है साथ ही रावण भी यहां नहीं जलाया जाता है जिसने दुकान खोलने या रावण जलाने की कोशिश की उसकी आकस्मिक मौत हो गई। 70 के दशक में बैजनाथ में शिव मंदिर के मैदान में दशहरा मनाने शुरू किया और रावण, मेघनाद और कुंभकर्ण के पुतले बनाए ही थे कि जिन लोगों ने ये पुतले बनाएं उनके साथ दुर्घटना हो गई। इसलिए आज तक किसी ने बैजनाथ में रावण के पुतले जलाने का प्रयास किया न सुनार की दुकान खोलने का।