भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान मंडी में चल रहे मेगा जी20-एस20बैठक के चौथे दिन अकादमिक संस्थान, रक्षा अनुसंधान और विकास संगठन डीआरडीओ, डीपीएसयू और सशस्त्र बल एक साथ एक मंच पर आए। इस दौरान सहयोगी दृष्टिकोण के माध्यम से रक्षा क्षेत्र में प्रौद्योगिकी विकास को बढ़ावा देने पर प्रमुखता से चर्चा की गई। इस आयोजन का विषय रक्षा के लिए प्रौद्योगिकी रखा गया था।
इस बारे में आईआईटी मंडी के निदेशक प्रो. लक्ष्मीधर बेहरा ने कहा कि शिक्षा जगत, अनुसंधान एवं विकास संस्थान, उद्योगों, स्टार्टअप और सशस्त्र बलों को सक्रिय संवाद मोड में लाने की आवश्यकता है। जहां पर स्वतंत्र एवं स्पष्ट रूप से नवीन विचारों का आदान-प्रदान हो सकता है।
उन्होंने कहा कि हम रक्षा केलिए प्रौद्योगिकी पर एक जीवंत और प्रेरणादायक सत्र की ओर देख रहे हैं और आईआईटी मंडी का लक्ष्य रक्षा के क्षेत्र में योगदान देना है जो हमारे महान देश के लिए सर्वोपरि है।
आईआईटी मंडी के रणनीतिक सलाहकार एयर वाइस मार्शल पीकेएच सिन्हा सेवानिवृत्त ने डॉ. रजनीश शर्मा के साथ कार्यक्रम का समन्वय किया और एक ऐसा वातावरण तैयार करने पर जोर दिया जो नवाचार को बढ़ावा दे और रक्षा उपयोग के लिए प्रौद्योगिकियों के विकास को प्रोत्साहित करे। प्रौद्योगिकी के मुख्य समन्वयक एयर वाइस मार्शल पीकेएच सिन्हा (सेवानिवृत्त) ने कहा कि रक्षा क्षेत्र के चार स्तंभ हैं।
जिनमें अकादमिक संस्थान, जो विशिष्ट और महत्वपूर्ण उभरती प्रौद्योगिकियों में शोध करता है। रक्षा अनुसंधान और विकास संगठन डीआरडीओ, जो इन प्रौद्योगिकियों को प्रयोग में लाने हेतु अनुकूल बनाता है और इसे बड़े पैमाने पर उत्पादन के लिए उद्योग को सौंपता है।
उद्योग, जो इसे हमारे सैनिकों, वायु योद्धाओं और नाविकों और रक्षा बलों के उपयोग के लिए और मजबूत बनाता है। अंत में रक्षा सेनाएं इन नवाचारों और प्रौद्योगिकियों का उपयोग करती हैं। उन्होंने कहा कि आज क्रिटिकल इमर्जिंग टेक्नोलॉजीज आईसीईटी पर विशिष्ट पहल के लिए एक मजबूत नींव बनाने के लिए इन चार स्तंभों के बीच तालमेल की तत्काल आवश्यकता है।
मुझे यकीन है कि आईआईटी मंडी के जी20-एस20 सम्मलेन के इस रक्षा प्रौद्योगिकी कार्यक्रम के माध्यम से भारत को आत्मनिर्भर बनाने की पहल को बढ़ावा मिलेगा। वहीं एआरएमआरईबी के अध्यक्ष पद्मश्री डॉ. सतीश कुमारने कहा कि भूख, गरीबी और सुरक्षा से संबंधित समस्याओं का समाधान केवल विज्ञान के माध्यम से ही किया जा सकता है।
डीआरडीओ हमारे सशस्त्र बलों को अत्याधुनिक उपकरणों से लैस करते हुए महत्वपूर्ण रक्षा प्रौद्योगिकियों और प्रणालियों में आत्मनिर्भरता हासिल करने के उद्देश्य से एयरोनॉटिक्स, इलेक्ट्रॉनिक्स, मिसाइल और नौसेना प्रणाली जैसे विभिन्न विषयों को कवर करने वाली रक्षा प्रौद्योगिकियों और आवश्यकताओं के अनुरूप हथियार प्रणालियों को विकसित करने में लगा हुआ है।
जब तक हमारे पास शिक्षा, अनुसंधान एवं विकास और उद्योग के बीच एक अच्छा वातावरण तंत्र नहीं है तब तकहम रक्षा क्षेत्र का स्वदेशीकरण नहीं कर सकते हैं। इसलिए मैं इस साझा लक्ष्य को हासिल करने के लिए आईआईटी मंडी के साथ एक सफल सहयोग की आशा करता हूं।
कार्यक्रम के दौरान डेटोनिक्स, शॉक, ब्लास्ट और प्रभाव विषय पर टीबीआरएल के निदेशक डॉ. प्रतीक किशोर ,भारतीय हिमालय में पर्वतीय संकट प्रबंधन का अवलोकन, चुनौतियों और प्रौद्योगिकी की आवश्यकताओं पर डीजीआरई के निदेशक डॉ. प्रमोद के. सत्यवाली, केम-बायोडिफेंस और डीआरडीई पर डीआरडीई के प्रमुख तकनीकी विशेषज्ञ डॉ. बीएन आचार्य, भारत इलेक्ट्रॉनिक्स लिमिटेड की भूमिकाओं और जिम्मेदारियों पर बीईएल-पंचकुला की एजीएम दीपा बाजपेयी द्वारा प्रकाश डाला गया।
आईआईटी मंडी रक्षा अनुसंधान एवं नवाचार के क्षेत्र में सक्रिय रूप से कार्य कर रहा है। आईआईटी मंडी ने वायुसेना के हेडक्वार्टर्स मेंटेनेंस कमांड नागपुर के साथ सहयोग के लिए एक समझौता पत्र साइन किया है। इसके तहत आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस, मशीन लर्निंग, मानव-कंप्यूटर इंटरेक्शन और निर्णय सहायता प्रणाली के क्षेत्रों में अनुसंधान और प्रौद्योगिकी विकास के लिए सहयोग किया जाएगा।