चंबा के ऐतिहासिक मिंजर मेले अंतरराष्ट्रीय मेले का दर्जा मिला है. जिसको लेकर हिमाचल प्रदेश भाषा एवं संस्कृति विभाग के सचिव ने अधिसूचना जारी कर दी है. अब ये मेला अंतरराष्ट्रीय मिंजर मेले के रूप में जाना जाएगा.
बता दें कि मिंजर मेला सावन के दूसरे रविवार से शुरू होकर सप्ताह भर चलता है. यहां के मक्की की बालियों को मिंजर कहते हैं. उसी से मेले का नाम पड़ा है. इस मेले की शुरुआत भगवान रघुवीर और लक्ष्मीनारायण को मिंजर भेंट करने से होती है. इस खास मिंजर को एक मुस्लिम परिवार रेशम, डोरी, मोती और तिलों से तैयार करता है. एक हफ्ते बाद इसे चंबा की रावी नदी में बहा दिया जाता है.
मिंजर मेले में पहले दिन भगवान रघुवीर की रथ यात्रा निकलती है और इसे रस्सियों से खींचकर चंबा के ऐतिहासिक चौगान तक लाया जाता है. हिमाचल में हर लगभग गांव का अपना एक देवता होता है. इस मेले में करीब 200 देवी-देवता भी पारंपरिक तरीके से पहुंचते हैं.
मिंजर में हिमाचली पकवान, नाटी और लोक कला के अलावा खेलकूद और शॉपिंग का आनंद लेने भी लोग पहुंचते हैं. हर दिन अपने आप में खास होता है और सदियों से चली आ रही परंपरा को आगे बढ़ाता है.
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