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चंबा-पांगी सुरंग संघर्ष समिति लोकसभा चुनाव का करेगी बहिष्कार

पी. चंद |

विकास के बड़े- बड़े दावे करने वाली सरकारों की पोल जिला चंबा के पांगी घाटी में पहुंचकर खुल जाती है। पांगी घाटी की लगभग 30 हज़ार की जनसंख्या आज भी 6 महीने का कारावास झेलने को मजबूर हैं। लोगों का जीवन कालापानी के समान होकर रह गया है। सरकारों आती हैं जाती हैं लेकिन हर बार इन लोगों के साथ झूठे वायदे ही किए गए। करीब पांच दशक की चिरलंबित सुरंग की मांग को अब तक कोई भी सरकार अमलीजामा नहीं पहना सकी है।

डॉ. हरीश शर्मा संयोजक पांगी संघर्ष समिति का कहना है कि राजनीतिक पार्टियों ने घाटी की जनता को सुरंग निर्माण का लालच देकर उन्हें मात्र वोट बैंक के रूप में ही इस्तेमाल किया है। जिसके चलते अब घाटी की जनता का लोकतंत्र से विश्वास उठ गया है और इस बार लोगों ने एकजुट होकर लोकसभा चुनाव का बहिष्कार का निर्णय लिया है।

छह महीने के लिए शेष विश्व से कटी रहती है घाटी

हालात यह हैं कि साल के 6 महीने से अधिक समय तक घाटी शेष विश्व से कटी रहती है। रियासत काल में जब देश में राजतंत्र चलता था तो इस कबाइली क्षेत्र में उस समय शासक अपने क्षेत्र में अपराध करने वालों को बतौर सजायाप्ता मुजरिम यहां लाकर छोड़ देते थे और यहां के विपरीत मौसम में उनका क्या होता था कुछ नहीं पता। बेशक आज प्रजातंत्र है लेकिन इसके बाद भी यहां पर हालात नहीं बदले हैं। राजाओं की दंड भूमि के नाम से उस समय जानी जाने वाली पांगी घाटी को आज भी लोग विकास के अभाव में कालापानी ही कहते हैं।

मौत के मुंह में धकेले जा रहे लोग

स्वास्थ्य सेवाओं की बात की जाए तो यहां की जनता के साथ केवल छल ही किया गया है। सरकारें आज देश और प्रदेश के हर कोने में स्वास्थ्य सेवाओं को बेहतर करने के बड़े- बड़े दावे कर रही है। लेकिन पांगी में स्वास्थ्य सेवाओं के हालात कुछ और ही ब्यान करते हैं। आपातकालीन स्थिति में पांगी से रैफर होने वाले मरीजों को मौत के मुंह में धकेला जाता है। सर्दियों में बर्फ से ढके मार्गों के बीच से मरीज को 340 किलोमीटर दूर जम्मू पहुंचाना असंभव हो जाता है। यही कारण है कि सर्दियों में उपचार के अभाव में घाटी में मृत्यु दर में भी इजाफा होता है।

सुरंग निर्माण से रक्षा मंत्रालय को प्रति वर्ष होगा करोड़ों रुपए का फायदा

सुरंग निर्माण से न केवल घाटी की जनता को समय पर उपचार मिल पाएगा अपितु सुरक्षा की दृष्टि से भी यह सुरंग काफी लाभदायक सिद्ध होगी। सुरंग निर्माण से पठानकोट- डलहौजी- तीसा- पांगी- लेह मार्ग की दूरी मात्र 421 किलोमीटर तक सिमट कर रह जाएगी। जबकि वर्तमान में पठानकोट- मनाली- लेह की कुल दूरी 802 किलोमीटर है। लिहाजा इससे रक्षा मंत्रालय द्वारा प्रति वर्ष करोड़ों रुपए की बचत की जा सकती है।

सूचना क्रांति के इस युग में खत लिखते हैं घाटी के लोग

सूचना क्रांति के इस युग में विकास की प्रथम दूरसंचार की सुविधा भी नाममात्र है। दूरसंचार सेवा का विस्तार न होने से यह क्षेत्र न केवल विकास में पिछड़ा है बल्कि समाजिक जीवन को भी प्रभावित कर रहा है। आज के इस आधुनिक युग में जहां भारत डिजिटल इंडिया की ओर अग्रसर है तो वहीं पांगी उपमंडल की 60 प्रतिशत आबादी ने आज दिन तक मोबाइल फोन भी नहीं देखा है। जिसका मुख्य कारण है घाटी में सिग्नल का न होना। आज भी लोग एक दूसरे को खत लिखकर कुशलक्षेम पूछते हैं। कुल मिलाकर पांगी उपमंडल में मात्र 20 प्रतिशत गांव ही ऐसे हैं जहां कि मोबाइल के माध्यम से बातचीत की जा सकती है। ऐसे में यह क्षेत्र कैसे विकास गति पकड़ेगा।

प्रजामंडल का भी बहिष्कार को समर्थन

सुरंग निर्माण को लेकर पांगी घाटी के प्रजामंडलों ने भी अपना भरपूर समर्थन जाहिर किया है। प्राचीन काल से पांगी घाटी में प्रजामंडल को देश के सर्वोच्च न्यायालय से भी ऊपर का दर्जा दिया गया है। प्रजामंडल द्वारा सुनाए गए निर्णय को जनजातीय समुदाय का कोई भी व्यक्ति दरकिनार नहीं कर सकता है। यदि कोई प्रजामंडल के आदेशों की अवहेलना करता है तो उसे समाज से निष्कासित करने का दंड सुनाया जाता है। प्रजामंडल के समर्थन से घाटी में पहली बार शून्य मतदान दर्ज होगा।

उक्त सभी समस्याओं का समाधान केवल सुरंग निर्माण से ही संभव है। पांगी के लोगों की यही पुकार अबकी बार चुनाव का बहिष्कार।