सीटू मंडी ज़िला कमेटी ने प्रदेश सरकार द्वारा पेश किए गए बजट को मजदूर व कर्मचारी विरोधी करार दिया है। यह बजट ऊंट के मुंह में जीरा डालने जैसा है जहां पर महंगाई के मध्यनजर मजदूरों के वेतन को उपभोक्ता मूल्य सूचकांक के साथ नहीं जोड़ा गया है और सरकारी कर्मचारियों के लिए छठे वेतन आयोग की विसंगतियों,एनपीएस कर्मियों के लिए ओल्ड पेंशन स्कीम बहाली तथा आउटसोर्स,एसएमसी व स्कूल आईटी अध्यापकों के लिए नीति बनाने के सवाल पर यह बजट खामोश है।
सीटू के ज़िला अध्यक्ष भूपेंद्र सिंह व महासचिव राजेश शर्मा ने कहा है कि यह बजट मजदूरों व कर्मचारियों के साथ क्रूर मजाक है क्योंकि उनके वेतन को महंगाई सूचकांक के साथ नहीं जोड़ा गया है। मजदूरों की 350 रुपये दिहाड़ी की घोषणा पड़ोसी राज्यों और केंद्र सरकार के वेतन की तुलना में बेहद कम है व 50 रुपये प्रतिदिन की वेतन बढ़ोतरी का लाभ भी प्रदेश के उद्योगों, कारखानों व असंगठित क्षेत्र में कार्य करने वाले अस्सी प्रतिशत मजदूरों को नहीं मिलेगा।
मनरेगा मजदूरों को दो सौ दिन का रोजगार देने व न्यूनतम वेतन 350 रुपये करने के सवाल पर बजट भाषण में मुख्यमंत्री ने कन्नी काट ली है। कोरोना योद्धाओं आशा व आंगनबाड़ी कर्मियों के साथ प्रदेश सरकार ने घोर अन्याय किया है क्योंकि आशा कर्मियों व आंगनबाड़ी सहायिकाओं का 4700 रुपये वेतन,आंगनबाड़ी कर्मी का 9000 रुपये वेतन व मिनी आंगनबाड़ी कर्मी 6100 रुपये वेतन प्रदेश सरकार द्वारा घोषित न्यूनतम वेतन से बेहद कम है। मिड डे मील कर्मियों के लिए केवल 3500 रुपये वेतन की घोषणा की गई है। पड़ोसी राज्यों व केंद्र सरकार के वेतन की तुलना में इस बजट की घोषणाओं के बावजूद भी हिमाचल प्रदेश के मजदूरों व सरकारी कर्मियों का वेतन बेहद कम है।
उन्होंने कहा कि महंगाई के मध्यनजर मजदूरों के वेतन को उपभोक्ता मूल्य सूचकांक के साथ नहीं जोड़ा गया है तथा सरकारी कर्मचारियों के लिए छठे वेतन आयोग की विसंगतियों,एनपीएस कर्मियों के लिए ओल्ड पेंशन स्कीम बहाली,आउटसोर्स,एसएमसी व स्कूल आईटी अध्यापकों के लिए नीति बनाने के सवाल पर यह बजट खामोश है। सिलाई अध्यापिकाओं को 7950 रुपये,वाटर कैरियर को 3900 रुपये,जल रक्षक को 4500 रुपये,जलशक्ति मल्टी पर्पज वर्कर्स को 3900 रुपये,पैरा फिटर,पंप ऑपरेटर को 5550 रुपये,पंचायत चौकीदार को 6500 रुपये,राजस्व चौकीदार को 5000 रुपये,राजस्व लंबरदार को 3200 रुपये प्रतिमाह वेतन देना मजदूरों व कर्मचारियों से क्रूर मजाक है क्योंकि इन्हें प्रदेश सरकार द्वारा घोषित न्यूनतम वेतन के दायरे में नहीं लाया गया है। एसएमसी व आईटी टीचर के मानदेय में केवल 1000 रुपये प्रतिमाह बढ़ाने की घोषणा व उनके लिए नीति न बनाने से साफ हो गया है कि यह बजट कर्मचारी हितैषी नहीं है।