<p>इस मिठाई को पहली नजर देखते ही आप चकमा खा जाएंगे। आपको लगेगा कि यह मिठाई नहीं बल्कि हरी सब्जियां, फूल, फल और सूखे मेवे हैं। चौंकिए नहीं, यह सब्जियां फल और ड्राई फू्रट्स नहीं हैं। यह खास तरह की मिठाई है, जो सिर्फ हमीरपुर के एक गांव में लाहौर के बने हुए खास तरह के सांचों से बनती है। हमीरपुर जिला के नादौन विकास खंड की किटपल पंचायत के सेरा रोड़ गांव के दिनेश कुमार उर्फ बिट्ट़् सांचों से विशेष प्रकार की मिठाई बनाने में माहिर हैं।</p>
<p><span style=”color:#d35400″><strong>जनकप्रसाद के बनाए हैं छाते</strong></span><br />
दिनेश पिछले 17 सालों से मिठाई की दुकान चला रहे हैं। इन्होंने 10 सालों तक बदारन में दुकान की और अब पिछले 7 सालों से अपने ही गांव में मिठाई की दुकान चला रहे हैं। उनके पास 17 प्रकार के सांचे हैं, जोकि लाहौर के छाता बाजार के बने हुए हैं। दिनेश के पास मिठाई बनाने के जो विशेष सांचे मौजूद हैं, उन्हें वहां के किसी जनकप्रसाद ने बनाया है। सांचों के पीछे यह मुहर लगी हुई है।</p>
<p><span style=”color:#d35400″><strong>17 प्रकार के सांचे</strong></span><br />
दिनेश के पास 17 प्रकार के सांचे हें। इनमें करेला, बैंगन, भिंडी, तर, गाजर, अदरक, मक्की, गुलाब, केला, गलगल, आलू, आम, आड़ू, बादाम, अखरोट, छुआरा और कंडा के आकार की विशेष प्रकार की मिठाई और बफी तैयार कर सकते हैं। सांचे ऐतिहासिक धरोहर के रूप में दिनेश कुमार के पास मौजूद हैं। दिनेश ने अपने पुरखों की निशानियों को संजो कर रखने की मिसाल कायम की है। उन्हें मलाल है कि आगे मिठाई बनाने की इस कला को सीखने वाला कोई नहीं है, बावजूद इसके उन्होंने इन सांचों को जान से भी ज्यादा संभाल कर रखा हुआ है।</p>
<p><span style=”color:#d35400″><strong>लाहौर में मिठाई बनाते थे नाना</strong></span><br />
हलवाई के तौर पर मशहूर भगत राम कभी लाहौर में मिठाई की दुकान चलाते थे, लेकिन भारत विभाजन ने उन्हें भी उखड़ने पर मजबूर दिया। लाहौर का कारोबार छोड़ घर लौटना पड़ा तो उन्होंने कांगड़ा जिला के सांतला में अपने पुराने मिठाई के काम को स्थापित किया। वह कड़क स्वभाव के व्यक्ति थे और लंबी आयु जीए। वर्ष 2012 में 102 साल की उम्र में स्वर्ग सिधारे। हलवाई के तौर पर उनकी विशेष पहचान रही।</p>
<p><span style=”color:#d35400″><strong>नाना से सीखा हुनर</strong></span><br />
दिनेश कहते हैं कि सांतला में उनका ननिहाल है। बचपन में जब वह वहां जाते थे तो नाना ने उन्हें मिठाई बनाना सिखाई थी। बाद में नाना ने उन्हें विशेष प्रकार से सांचे भेंट किए। बाद में उन्होंने इन सांचों के जरिये विशेष प्रकार की बर्फी बनाने की कला सीखी थी। बाद में जब मिठाई का काम शुरू किया तो यह कला उनके बड़े काम आई।</p>
<p><span style=”color:#d35400″><strong>स्पेशल ऑर्डर पर बनती बर्फी</strong></span><br />
अपने नाना की यादों को ताजा रखने के लिए आज भी वह विशेष ऑर्डर पर विशेष बर्फी बनाते हैं। दिनेश के पिता का नाम केवल कृष्ण और मां का नाम कांता देवी है। वे दो भाई हैं और छोटे भाई सुनील टैंट हाउस चलाते हैं। दिनेश कहते हैं कि पहले इस खास मिठाई की बहुत मांग होती थी और दूर दूर से लोग खरीदने आते थे। इस मिठाई को तैयार करने में खासा समय और मेहनत लगती है। ऐसे में अब वह ऑर्डर पर ही यह मिठाई तैयार करते हैं।</p>
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