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डॉ मंगतराम डोगरा, बीरबल शर्मा और नरेंद्र ठाकुर को मिलेगा राज्यस्तरीय पुरस्कार, मुख्यमंत्री करेंगे सम्मानित

<p>हिमाचल सरकार ने गुरूवार को राज्यस्तरीय पुरस्कारों की घोषणा कर दी। इनमें शिमला से डॉ मंगतराम डोगरा और मंडी से बीरबल शर्मा और नरेंद्र ठाकुर को चुना गया है। डॉ मंगतराम का नाम सिविल सर्विसेज पुरस्कार के लिए, प्रेरणास्त्रोत सम्मान के लिए बालीचौकी के लोकगायक नरेंद्र ठाकुर और हिमाचल गौरव पुरस्कार के लिए मंडी से वरिष्ठ छायाकार बीरबल शर्मा को चुना है। सामान्य प्रशासन विभाग ने के सचिव देवेश कुमार ने इन पुरस्कारों के बारे में बताते हुए कहा कि सभी को कुल्लू में आयोजित होने वाले राज्यस्तरीय स्वतंत्रता दिवस समारोह में मुख्यमंत्री द्वारा सम्मानित किया जाएगा।</p>

<p><span style=”color:#e74c3c”><strong>चीफ रेटिना सर्विस के प्रमुख हैं डॉ. मंगत राम&nbsp; डोगरा</strong></span></p>

<p>डॉ. मंगत राम डोगरा पूर्व प्रोफेसर और नेत्र विज्ञान के प्रमुख और उन्नत नेत्र केंद्र, पोस्ट ग्रेजुएट इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल एजुकेशन एंड रिसर्च (PGIMER) चंडीगढ़, भारत में चीफ रेटिना सर्विस के प्रमुख हैं। उन्होंने 30 जून, 2019 को पीजीआईएमईआर से सुपरन्यूज किया। वर्तमान में वे ग्रेवाल आई इंस्टीट्यूट, चंडीगढ़ में रेटिना सर्विसेज के निदेशक हैं। अप्रैल 1977 में मेडिकल कॉलेज शिमला, हिमाचल प्रदेश से मेडिकल डिग्री (एमबीबीएस) की डिग्री प्राप्त की, उसके बाद पीजीआईएमईआर चंडीगढ़ में नेत्र विज्ञान में निवास किया, जिसे उन्होंने दिसंबर 1981 में पूरा किया। उन्होंने जुलाई 1989 से जून 1991 तक दो साल का विटेरो-रेटिना फेलोशिप प्रशिक्षण प्राप्त किया।</p>

<p>रोगी देखभाल, शिक्षण और अनुसंधान का उनका विशेष क्षेत्र विटेरो-रेटिनल रहा है। पिछले 30 साल से समयपूर्वता (ROP) की रेटिनोपैथी सहित रोग और सर्जरी। डॉ डोगरा ने साथियों की समीक्षा की राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय पत्रिकाओं, 189 किताबों और विट्रो-रेटिना रोगों और आरओपी पर कई पुस्तक अध्यायों में 189 पत्र प्रकाशित किए हैं। उन्होंने विभिन्न राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलनों में 558 व्याख्यान दिए हैं। उनका अधिकतम योगदान रेटिनोपैथी ऑफ प्रीमैच्योरिटी (ROP) के क्षेत्र में रहा है। उन्हें भारत और विदेशों में ROP पर 207 अतिथि व्याख्यान देने के लिए आमंत्रित किया गया है। वह ROP पर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मान्यता प्राप्त विशेषज्ञ हैं और भारत में इस क्षेत्र में अग्रणी माने जाते हैं। इन्हें 31 अन्य अवार्ड भी मिल चुके हैं।</p>

<p><span style=”color:#e67e22″><strong>बीरबल शर्मा के चार दशकों की अथक मेहनत का परिणाम है पुरस्कार</strong></span></p>

<p>सरकार द्वारा उन्हें सम्मान देने की सूचना के बाद बीरबल शर्मा ने बताया कि उन्होंने 15 अगस्त 1972 को फोटोग्राफी की दुनिया में उस समय कदम रखा था जब वह महज 16 साल का था। पहली जनवरी 1982 को मैंने मंडी शहर के कालेज रोड़ पर बीरबल स्टूडियो के नाम से अपना स्टूडियो स्थापित किया। शुरू ही मुझे कठिन यात्राएं करने और व्यवसाय से हटकर छायांकन करने का जुनून और शौक था। ऐसे लोग जो कभी अपना फोटो खिंचवाने की सोच भी नहीं सकते थे उन्हें कैमरे में कैद करने की रूची मेरी रहती थी। शायद इसका एक बड़ा कारण यह भी मेरे जहन में रहा होगा कि 1970 में जब मैं अपने गांव के राजकीय ग्यारह ग्रां स्कूल, हरसौर तहसील बड़सर, जिला हमीरपुर में आठवीं कक्षा का छात्र था तो साल के अंत में यादगार के रूप खिंचवाए जाने वाले सामूहिक चित्र की कीमत देने के लिए मेरे पास साढ़े तीन रुपए नहीं थे क्योंकि मेरे माता पिता बेहद गरीब थे और इस तरह का खर्चा वहन करने की हिम्मत उनमें नहीं थी। यही कारण है कि मेरे छात्र जीवन की कोई यादगार छायाचित्र के रूप में मेरे पास मौजूद नहीं है।</p>

<p>आज स्थिति यह है कि मेरे पास दो लाख से भी अधिक ऐसे लोगों और ऐसे स्थानों के चित्र हैं जो मैंने शौक से ही खींच रखे हैं। मुझे खुद भी मालूम नहीं कितना विशाल भंडार इस तरह के चित्रों का मेरे पास हो चुका है। कई बार में अपने खींचे चित्रों को देखता हूं तो खुद ही हैरान हो जाता हूं या फिर तब की याद करके दिल में अजीब सी हलचल होने लगती है। इधर उधर के चित्र खींच कर अपने स्टूडियो में सजाने के मेरे शौक को 1986 में मंडी जिला भाशा अधिकारी के रूप में आए डा, विद्या चंद ठाकुर ने नया मोड़ दिया। उन्होंने मुझे प्रदेश की संस्कृति, मेलों, त्योहारों, मंदिरों, किलों, मठों, गुरूद्वारों, मजिस्दों, स्मारकों, इतिहास, सुंदरता, लोक जीवन व इन विधाओं से जुड़े छायांकन करने की प्रेरणा दी। जब भी समय मिलता मैं अपने चंद दोस्तों के साथ कई कई दिन के भ्रमण पर निकल जाता और यह क्रम जीवन के 64 साल पूरे करने यानि साल 2020 तक निर्बाध रूप से चलता आ रहा है। भ्रमण के दौरान कई बार मेरा सामना मौत से साक्षात हुआ, मगर ईश्वर और देवी देवताओं की कृपा बनी रही।</p>

<p>55 हजार 673 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में फैले कठिन भौगोलिक परिस्थितियों वाले इस प्रदेष में जहां किसी खास महत्व वाले स्थल तक जाने के लिए कई कई दिन लग जाते है वहां नदियों के उद्गम स्थलों तक पहुंचने के लिए जान भी हथेली पर रखनी पड़ती है। खतरनाक रोमांचक दर्रों को पैरों से नापने के लिए कई बार सांसें थम जाती है, बर्फानी ठंडी हवाएं खून जमा देती, होंठ सूख जाते हैं, पांव छलनी हो जाते हैं, बड़ा भंगाल, डोडरा क्वार, पांगी, गरवीं दरैहट, श्री खंड महादेव, किन्नर कैलाश, नीलकंठ महादेव, मणीमहेश, दशौहर, भृगु, चंद्रताल, खीर गंगा, मानतलाई, सरयोलसर, पार्वती घाटी, चंद्रनाहन, पब्बर घाटी, भूवू जोत, चांसल दर्रा, थमसर जोत, साच पास जैसे कई ऐसे स्थल हैं जो अब भले ही सड़क मार्ग से जुड़ गए हों सड़कें इनके करीब पहुंच गई हों, मगर पहले तो यहां पहुंचने के लिए कई कई दिन कठिन पैदल यात्रा करनी पड़ती थी। कई-कई दिनों तक मीलों का सफर तय करना पड़ता है।</p>

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