<p>शिमला में भी ये पर्व मनाया तो गया लेकिन अपने ही घरों में, शिमला की जामा मस्जिद में भी आज ईद-उल जुहा यानी बकरीद का पर्व फ़ीका रहा। जहां इस पर्व पर भारी भीड़ जमा हुआ करती थी वह आज खाली- खाली दिखी। मौलवी मुफ़्ती मोहमंद शफीक कासमी ने बताया कि इस साल हालात एकदम अलग हैं। पूरी दुनिया कोरोना वायरस की महामारी से जूझ रही है। ऐसे में सभी लोगों से घर से ही नवाज़ अदा करने की अपील की गई। उन्होंने कहा कि इस दिन हज़रत मोहमद ने अपने बेटे की कुर्बानी दी थी। उस कुर्बानी को याद कर इस पर्व को मनाया नया है।</p>
<p>बता दें कि ईद-उल जुहा यानी बकरीद, ईद-उल फितर के बाद मुसलमानों का दूसरा सबसे बड़ा पर्व है। दोनों ही पर्वो पर ईदगाह और मस्जिदों में विशेष नमाज अदा की जाती है। ईद-उल फितर पर शीर बनाने का रिवाज है, जबकि ईद-उल जुहा पर बकरे या दूसरे जानवरों की कुर्बानी (बलि) दी जाती है। इस बार दूसरे धर्मों के पर्वों के साथ ईद पर भी कारोना का काला साया पड़ा है। जिसकी वजह से पर्वो के मौक़े पर जमा होने वाली भीड़ पर कई सरकारी पाबन्दियां हैं।</p>
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