Follow Us:

ऐतिहासिक गांव पांगणा में खुदाई, वरूण देव समेत निकली कई पाषाण मूर्तियां

मंडी जिले के करसोग उपमंडल के ऐतिहासिक कस्बे पांगणा में खुदाई के दौरान निकली वरूण देव समेत कई पाषाण मूर्तियां निकली

बीरबल शर्मा |

मंडी जिले के करसोग उपमंडल के ऐतिहासिक कस्बे पांगणा में खुदाई के दौरान निकली वरूण देव समेत कई पाषाण मूर्तियां निकली हैं. पांगणा के देहरी मंदिर परिसर में यह मूर्तियां खुदाई के दौरान मिली. ये मूर्तियां आदि हमारी संस्कृति और इतिहास पर प्रकाश डालती हैं. हमारा गौरवशाली अतीत ही आज का समृद्ध इतिहास है.ऐतिहासिक नगरी पांगणा के देहरी मंदिर में वरूण देव की मूर्ति निकलने से यह प्रमाणित हो गया है कि आज से कई हजार साल पहले पांगणा में जल के अधिष्ठाता वरूण की देव के रुप में पूजा होती थी .

सुकेत संस्कृति साहित्य एवं जन कल्याण मंच पांगणा के अध्यक्ष डाक्टर हिमेन्द्र बाली‘‘‘हिम‘‘‘‘जी का कहना है कि वरूण देव वैदिक वांग्मय में ऋत (सत) के पोषक माने जाते है और जल लोक के अधिपति देव हैं.वरूणदेव प्रजापति कश्यप और अदिति के 11वें पुत्र हैं.उनकी गणना वैदिक देव सुर्य नारायण,मित्र व इन्द्र आदि में होती है.वरूण देव नैतिकता के पोषक माने जाते है और ऋग्वेद के सांतवें मण्डल में वरूण की स्तुति हुई है.हिमाचल में वरूण देव सरोवर व जलाशय के अधिपति माने जाते हैं.

हिमाचल में वरूण देव नागों के पिता रूप में पूजित है.पंद्रहबीश के सरपारा में वरूण देव का संसर्ग नागिन से हुआ माना जाता है जिससे नौ नागों की उत्पति मानी जाती है.अतः हिमाचल में वरूण देव नाग परम्परा से सम्बद्ध है.मण्डी के सुकेत क्षेत्र में वरूण देव जल (जड़) देव रूप में पूजित हैं.सुकेत की आदि राजधानी पांगणा में वरूण की पाषाण प्रतिमा मिली है जिसमें देव मगर मच्छ पर आरूढ़ है.वैदिक वांग्मय में वरूण देव का वाहन मगरमच्छ है.अतः पांगणा से प्राप्त वरूण प्रतिमा से सिद्ध होता है इस क्षेत्र में वैदिक देव परम्परा प्राचीन काल से प्रचलित रही है.

कालांतर में वैदिक देव परम्परा के साथ नाग परम्परा के साथ संयोजन प्रत्यक्ष दृष्टिगोचर होता है.सुकेत क्षेत्र में वरूण जड़ देव रूप में नाग देवता के साथ आबद्ध है.पांगणा से प्राप्त वरूण प्रतिमा से सिद्ध होता है कि यहां वैदिक काल से वैदिक देव पूजा का विधान रहा है.हालांकि पौराणिक काल में वरूण देव जल देव रूप में पूजे जाते रहे हैं.आज भी वरूण देव जल के अधिपति रूप में नाग सम्प्रदाय में रक्षक की भूमिका में है. सुकेत प्राचीन काल में सुकुट नाम से प्रसिद्ध था.महाभारत में सुकेत को सुकुट नाम से अभिहित किया गया है.

पुरातत्व चेतना संघ मण्डी द्वारा स्वर्गीय चंद्रमणी कश्यप राज्य पुरातत्व चेतना पुरस्कार से सम्मानित डाक्टर जगदीश शर्मा का कहना है कि खुदाई करने पर देहरी में जल के लिए पूज्य मगरमच्छ पर सवार वरूण देव की मूर्ति भी मिली है. वरूण देव प्राचीन काल से लेकर आधुनिक युग तक भारत की सभ्यता और संस्कृति की कहानी है.वरूण देव में ऐसी शक्ति निहित है कि जो भी चीज इसका स्पर्श कर लेती है वह पवित्र हो जाती है.स्वय इन्द्र देव को वर्षा के लिए वरूणदेव से प्रार्थना करनी पड़ती है. इस मूर्ति के मिलने से इस क्षेत्र में वरूण देव की पूजा कितनी पुरानी है इसका प्रमाण इस मूर्ति के प्राक्टय से मिलता है.

इसी प्रकार सन् 2000 में इसी स्थान पर इरानी कला से साम्य रखती सूर्य मूर्ति भी मिल चुकी है.मंदिर के पुजारी शनि शर्मा का कहना है वरूण देव की यह मूर्ति खंडित हो गई है.इस मूर्ति के अलावा तीन मुख वाली मूर्ति भी निकली है.सराय भवन निर्माण के उद्देश्य से की गई खुदाई से जहाँ सूर्य देव व महिषासुर मर्दिनी माता की मूर्तियों निकली हैं यदि यहा भविष्य मे पूर्ण उत्खनन कर प्राचीन शैली के मंदिर का निर्माण किया जाएगा तो पांगणा के देहरी से और मूर्तियों के मिलने की प्रबल संभावना है. जिससे पांगणा के समृद्ध अतीत व देव संस्कृति को समझने में काफी मदद मिलेगी.