हिमाचल में कुल 3000 से ज्यादा पंचायतें हैं। जिनमें से 2310 पंचायतों में जंगली जानवर तबाही मचा रहे है। कई साल से जगंली जानवरों द्वारा किसानों की फसलों को तबाह किया जा रहा है। इससे किसान परेशान है और खेती करना ही बंद कर दिया है। उन्हें दो समय की रोटी के लाले पड़ रहे हैं।
सबसे ज्यादा तबाही उत्पति बंदरो की है उसके बाद सुअरों, नील गाय, भालू, आदि जंगली जानवरों फसल बर्बाद की जा रही है। नीलगाय , बंदर , सुअर और जंगली जानवरों द्वारा फसलों को होने वाले भारी नुकसान से परेशान किसानों ने कुछ स्थानों पर सब्जियों तथा बागवानी फसलों की खेती से मुंह मोडना शुरू कर दिया है ।
किसानों आंदोलन के दबाब में हिमाचल प्रदेश के लिए केंद्र ने बंदरो को एक साल के लिए बर्मिंन घोषित कर मारने के आदेश तो दिए जिनको हिमाचल सरकार ने किसानों को 500 रुपये बंदर मारने के हिसाब से इनाम भी रखा लेकिन इसके आशातीत परिणाम नही आए। बंदरो की समस्या अब भी जस की तस बनी हुई है।
किसान जंगली जानवरों के आतंक से परेशान होकर खेती से मुंह मोड़ रहे हैं। पहाड़ी क्षेत्रों में यह उत्पाती बंदर किसानों के खेतों में लगी फसलों पर धाबा बोल देते हैं, जिस कारण किसान खासे परेशान हैं। कृषक दिन-प्रतिदिन मक्की, गेहूं, बेमौसमी सब्जियां तथा बागबानी आदि से जंगली जानवरों के आतंक के कारण तौबा करने लगे हैं।
जहां पहाड़ी क्षेत्रों में बंदर, खरगोश, गीदड़ व सैल आदि लोगों की फसलों को तबाह करते हैं। वहीं मैदानी इलाकों में बंदर और जंगली सूअरों ने लोगों का जीना मुहाल कर रखा है। यही नहीं जिला सिरमौर के मैदानी इलाकों के किसान व बागबान भी जंगली जानवरों से खासे परेशान हैं।
जिला सिरमौर के मैदानी इलाकों के किसानों व बागबानों का कहना है कि उनके यहां गेहूं की अच्छी फसल होती है और साथ ही फल उत्पादन भी होता है, लेकिन जिला के कुछ गांव जंगली जानवरों से खासे परेशान है। इन ग्रामीणों का कहना है कि दिन में बंदर, रात को जंगली सूअर, बारहसिंघा और नीलगाय आदि जंगली जानवर उनकी फसलों को बर्बाद कर रहे हैं।
हिमाचल के अधिकांश क्षेत्रों में जंगली जानवरों ने किसानों का जीना दूभर कर दिया है। जंगली जानवर हर वर्ष 500 करोड़ रुपए (अनुमानित) की नकदी फसलें तबाह कर रहे हैं। हिमाचल किसान सभा राज्य अध्यक्ष डॉ. कुलदीप ¨सह तंवर ने कहा है कि जंगली जानवरों की वजह से हिमाचल के किसानों को हर साल 500 करोड़ का नुकसान हो रहा है।
डॉ. तंवर ने बताया कि प्रदेश में 55 लाख हेक्टेयर भूमि में से मात्र छह लाख हेक्टेयर भूमि पर ही खेती होती है। इनमें से एक लाख हेक्टेयर भूमि जल विद्युत परियोजनाओं के लिए पानी में डूब गई है। वहीं, जंगली जानवरों बंदरों, सुअर, खरगोश, सैहल आदि की वजह 80 हजार हेक्टेयर भूमि पर किसानों ने खेती छोड़ दी है। जिससे हर साल 400 से 500 करोड़ का नुकसान हो रहा है।
किसान अपने खेत बंजर छोड़ आय के दूसरे साधनों की तलाश में इधर-उधर जा रहे हैं। राज्य की कृषि योग्य सैकड़ों बीघा जमीन बंजर हो चुकी है। जानवर हरी-भरी फसलें खेतों में ही तबाह कर रहे हैं। आलम यह है कि फसलों की रखवाली के लिए किसान रातों में भी चैन की नींद नहीं सो पा रहे हैं। दिन में तो बंदरों व सूअर की रखवाली करनी पड़ती है और रात के समय साही, खरगोश, नील गाय इत्यादि जंगली जानवरों के लिए खेतों में ही पहरा देना पड़ता है।
जून 2013 में हुई गणना के अनुसार प्रदेश में कुल 2,26,086 बंदर पाए गए हैं। जबकि वर्ष 2004 की गणना के अनुसार प्रदेश में 3,17,112 बंदर थे। लाहुल स्पीति, किन्नौर, बिलासपुर व कुल्लू जिलों में बंदर नसबंदी केंद्र नहीं खोले गए हैं। लाहुल-स्पीति जिला में बंदर नहीं पाए जाते। जिला किन्नौर में बहुत कम संख्या में बंदर पाए गए।
हिमाचल प्रदेश के किसान बंदरों व जंगली जानवरों के आतंक से परेशान हैं। बंदरों व जंगली जानवरों के आतंक से परेशान किसानों ने कई स्थानों पर खेती से मुंह मोड़ लिया है। शिमला, सोलन व सिरमौर की कई पंचायतों में तो जमीन बंजर तक हो गई है। किसानों ने मकई व अन्य फसलें बीजना छोड़ दी है।
एक सर्वे के अनुसार हिमाचल में बंदरों की संख्या करीब चार लाख है। हालांकि राज्य सरकार ने बंदरों की नसबंदी की प्रकिया शुरू की, लेकिन इससे कोई खास फर्क नहीं पड़ा। सरकारें आती है चली जाती है विधानसभा में जंगली जानवरों खासकर बंदरों पर खूब चर्चा होती है। लेकिन हालात सुधरने के बजाए बिगड़ रही है। हर चुनाव में ये मुद्दा राजनीतिक दलों के चुनावी घोषणापत्र में होने बाबजूद इसके हल कोई नही निकाल पाता है।