<p>शिमला में फोरलेन संयुक्त संघर्ष समिति ने सरकार से आर-पार की लड़ाई लड़ने की चेतावनी दी है। फोरलेन प्रभावितों का सरकार को एक महीने का अल्टीमेटम दिया है। राज्य में बन रहे 4 फोरलेन और 70 नेशनल हाइवेज से हिमाचल की छाती छलनी हो रही है, उस पर मुआवजे का न मिलना और 2013 के भू-अधिग्रहण कानून के प्रावधानों की अनदेखी जनता को निरंतर सताती रही है। पूरे प्रदेश के ग्रामीण क्षेत्रों में टीसीपी के तानाशाही फरमानों ने जनता की नींद उड़ाई है। वहीं, 1968 के हिमाचल रोडसाइड कंट्रोल एक्ट के जिन्न ने 50 सालों बाद बोतल से बाहर निकल कर पूरे प्रदेश को तबाही का अपना प्रचंड रूप दिखा दिया है। शनिवार को शिमला में पत्रकार वार्ता को संबोधित करते हुए संयुक्त संघर्ष समिति के अध्यक्ष ब्रिगेडियर खुशाल ठाकुर ने कहा कि समिति इस मुद्दों से दो -चार होने को लामबंद हो गई है।</p>
<p>समिति ने अपनी 13 सूत्रीय मांगों को लेकर सरकार से वार्ता शुरू कर दी है। सरकार भी मान चुकी है कि यह मुद्दे क्षेत्र विशेष के न होकर पूरे प्रदेश के है, जिससे लाखों लोग प्रभावित हो रहे हैं। नागचला-मनाली फोरलेन में भू-अधिग्रहण कानून 2013 के पहले ट्रायल में उत्पन्न विवादों ने राज्य के मुद्दों को सुलझाने की एक पहल की है। प्रभावित और विस्थापित लोग केंद्र सरकार, प्रदेश सरकार, नेशनल हाईवे ऑथोरिटी और भू-अधिग्रहण अभिकरणों से गुहार लगा रहे हैं कि वह विकास के विरोधी नहीं हैं। लोग केवल अपने संवैधनिक अधिकारों की मांग कर रहे हैं।</p>
<p><span style=”color:#c0392b”><strong>यह है 13 मांगे….</strong></span></p>
<p>1. चार गुणा मुआवाजा दिया जाए। प्रधानमंत्री अपनी मन की बात और भाजपा-कांग्रेस अपने चुनावी घोषणा उत्रर में घोषणा कर चुके हैं।<br />
2 पुनर्स्थापना और पुनर्वास के संवैधानिक अधिकार की धज्जियां उड़ रही हैं। नेशनल हाईवे ऑथोरिटी ने सड़क निर्माण में भू अधिग्रहण कानून 2013 के अंतर्गत<br />
पुनर्स्थापन और पुनर्वास के लाभ देना तो दूर उल्टे आज तक पुनर्स्थापन व पुर्नवास के लाभार्थियों की चिन्हित तक नहीं किया गया है।<br />
3. मकानों में पुरानी दरें और करोड़ों के ब्याज नहीं दिया जा रहा है। मकानों के मुआवजा , लोक निर्माण विभाग की वर्तमान दरों की बजाय 2014 की दरों पर मनमाने ढंग से तय किया गया है। प्रभावितों की करोड़ों की चपत लग रही है।<br />
4. पेड़ -पौधों और अन्य फसलों के मूल्यांकन में प्रयुक्त किया जाने वाला फॉर्मूला पूरी तरह से अप्रसांगिक हैं। मूल्यांकन में 1979 में बनाया गया 'हरबंस सिंह' फॉर्मूला प्रयुक्त किया जा रहा है। जबकि 39 सालों में बागवानी के तरीके, पेड़-पौधे की प्रजातियों, किस्मों और कीमतों में भारी बदलाव आया है।<br />
5. ROW से सटी/बाहर भूमि पर ही रहे नुकसान के संदर्भ में नीति बननी चाहिए। वर्तमान में नेशनल हाईवे ऑथोरिटी अपनी जिम्मेदारी से पल्ला झाड़ रही है।<br />
6. आपसी विवादों के निपटारों के लिए समिति हो। वर्तमान में कोई व्यवस्था न होने से अप्रिय परिस्थितियां पैदा हो रही है।<br />
7. सेक्शन 26 पर कार्यवाही हो। भू- अधिग्रहण कानून 2013 सेक्शन 26 के अंतर्गत भूमि का बाज़ारी भाव तय न होने अथवा गलत ढंग से सर्कल रेट को लेने से प्रभावितों को नुकसान हो रहा है।<br />
8. सेक्शन 28 की अनदेखी की जा रही है। हालांकि अब सरकार ने इस सेक्शन के अंतर्गत सप्लीमेंट्री अवॉर्ड पर विचार करने का आश्वासन दिया है।<br />
9. पर्यावरण से खिलवाड़ हो रहा है। पर्यावरण की रक्षा और प्रदूषण से संबधित निर्देशों का पालन नहीं हो रहा।<br />
10. पारदर्शिता लाई जाए।<br />
11. नेशनल हाईवे एक्ट की प्रक्रिया के बिना कब्जे किये जा रहे हैं।<br />
12. पूरे प्रदेश के ग्रामीण क्षेत्रों को टीसीपी से तुरंत बाहर किया जाए।<br />
13. सरकार 5 मीटर कंट्रोल विड्थ में सरकार जनता को राहत दें।</p>
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