<p>जीभ के कैंसर से पीड़ित 45 वर्शीय मेहर चंद को अपनी जिंदगी हिचकोले खाती हुई नजर आ रही थी। कैंसर पीड़ित होने का ख्याल उन्हें निराशा की तरफ धकेल देता। उस पर शारीरिक चुनौतियां परेशानी का सबब बन गई थीं। खाने-पीने में भारी परेशानी का सामना करना पड़ रहा था। जीभ के कैंसर के अलावा गले में भी गांठ बननी शुरू हो गई थी, जिससे शारीरिक दिक्कतें दोगुनी हो गई थी। कैंसर के जख्म से होने वाली दर्द भी असहनीय थी। लगने लगा था कि अब जिंदगी हाथों से छिटक के कहीं दूर जा रही है।</p>
<p>मेहर चंद ने इलाज के लिए कई अस्पतालों में संपर्क किया लेकिन उत्साहजनक जवाब नहीं मिल पाया। सभी चिकित्सकों ने उन्हें प्रदेश से बाहर जाने की सलाह दी। आखिर, मेहर चंद ने फोर्टिस अस्पताल कांगड़ा का रूख किया। यहां के ईएनटी सर्जन डॉ. समित वाधेर ने मरीज को ढांढस बंधाया और उचित उपचार करने के लिए आश्वस्त किया। डॉ. वाधेर ने प्रारंभिक जांच में पाया कि जीभ में डेढ़ सेंटीमीटर की एक बड़ी गांठ के साथ-साथ गले में भी गांठ बननी शुरू हो गई है। इन दोनों गांठों को निकालना आवश्यक था, ताकि कैंसर के फैलने के खतरे को खत्म किया जा सके।</p>
<p>डॉ. वाधेर ने सभी वाजिब परीक्षण करने के बाद ऑपरेशन प्रक्रिया को अंजाम दिया। आपरेषन के जरिए मरीज की जीभ का बड़ा हिस्सा और गले की गांठ को पूरी तरह से निकाला गया। आपरेषन के उपरांत पांच दिन बाद मरीज को अस्पताल से डिस्चार्ज कर दिया गया। अब मरीज पूरी तरह से स्वस्थ होने की ओर अग्रसर है और अच्छे से खाना पीना भी शुरू कर दिया है। जीवन में निराशा के बादल छंट चुके हैं और उम्मीद की रौशनी से जिंदगी पटरी पर वापस लौटनी शुरू हो गई है।</p>
<p>इस संबंध में डॉ. समित वाधेर ने कहा कि इस तरह की बीमारी में शीघ्र उपचार करना लाजिमी होता है। अकसर लोग जानकारी के अभाव में इधर-उधर भटकते हैं। जिससे न केवल बीमारी बढ़ जाती है, अपितु मरीज को आर्थिक एवं मानसिक परेषानी से जुझना पड़ता है। उन्होंने कहा कि कोई भी बीमारी बड़ी नहीं होती है, बशर्ते उसका समय रहते उपचार करवाया जाए।<br />
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