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हिमाचल में 108 और 102 एंबुलेंस सेवाएं बंद, मांगों को लेकर विरोध प्रदर्शन, मरीज भटके

हिमाचल में 108 और 102 एंबुलेंस सेवाएं 24 घंटे के लिए ठप
सीटू से जुड़ी यूनियन का एनएचएम की नीतियों के खिलाफ विरोध
मरीजों को निजी गाड़ियों का सहारा, अस्पतालों में अफरा-तफरी


हिमाचल प्रदेश में आम जनता की जिंदगी से सीधा जुड़ी 108 और 102 एंबुलेंस सेवाएं 24 घंटे के लिए ठप हो गईं। कर्मचारी यूनियन (सीटू से संबंधित) ने 2 अक्तूबर रात 8 बजे से लेकर 3 अक्तूबर रात 8 बजे तक हड़ताल का ऐलान किया। यूनियन का आरोप है कि नेशनल हेल्थ मिशन (एनएचएम) कर्मचारियों के साथ लगातार शोषण कर रहा है और अदालतों के आदेशों की भी अनदेखी कर रहा है।

हड़ताल का सीधा असर राजधानी शिमला समेत कई जिलों में दिखाई दिया। आईजीएमसी, डीडीयू और केएनएच जैसे बड़े अस्पतालों में मरीजों को समय पर एंबुलेंस नहीं मिली और उन्हें मजबूर होकर निजी गाड़ियों या टैक्सी का सहारा लेना पड़ा। कई गंभीर मरीज रातभर अस्पतालों के बाहर एंबुलेंस का इंतजार करते रहे।

आईजीएमसी शिमला में सामान्य दिनों की तुलना में एंबुलेंस की संख्या आधी रह गई। जहां रोजाना 10 एंबुलेंस सेवाएं रहती हैं, वहीं गुरुवार रात केवल 4 निजी एंबुलेंस से काम चलाया गया। इसी तरह डीडीयू अस्पताल में 5 की जगह केवल 2 और केएनएच में 3 की जगह 1 निजी एंबुलेंस तैनात की गई। कुल 22 एंबुलेंस, जिनमें 14 (108 सेवा) और 8 (102 सेवा) होती हैं, ठप पड़ने से लोगों को भारी परेशानी उठानी पड़ी।

यूनियन अध्यक्ष विजेंद्र मेहरा ने कहा कि एनएचएम कर्मचारियों से 12 घंटे ड्यूटी ली जा रही है, लेकिन वेतन 8 घंटे से भी कम का दिया जा रहा है। इसके अलावा ओवरटाइम का भुगतान भी नहीं किया जाता। उन्होंने चेतावनी दी कि यदि सरकार ने मांगों पर तुरंत सकारात्मक पहल नहीं की तो यह आंदोलन और उग्र रूप लेगा।

हालांकि प्रशासन ने स्थिति को संभालने के लिए निजी एंबुलेंस हायर करने का फैसला लिया है, लेकिन उनकी संख्या जरूरत के मुकाबले काफी कम रही। इस वजह से मरीजों और तीमारदारों को ज्यादा खर्च और परेशानियों का सामना करना पड़ा।

यूनियन का कहना है कि सरकार को चाहिए कि वह अदालतों और श्रम कानूनों के आदेशों का पालन करे, कर्मचारियों को न्यूनतम वेतन, ओवरटाइम और उचित सुविधाएं दे। वरना, यह आंदोलन आगे भी जारी रह सकता है।