<p>हिमाचल प्रदेश का शिक्षा में देश भर में पहला या दूसरा रैंक रहता है लेकिन राष्ट्रीय शिक्षक पुरस्कार झटकने में यह फिसड्डी बन चुका है। हालात ये हैं कि साल 2017-2018 के नेशनल टीचर अवार्ड्स में सूबे से मात्र एक-एक शिक्षक को ही यह पुरस्कार मिला है। जबकि मानव संसाधन मंत्रालय में हिमाचल प्रदेश के लिए तीन शिक्षकों को राष्ट्रीय अवार्ड दिए जाने का कोटा तय है। हिमाचल के एक लाख शिक्षकों में से शिक्षा विभाग हर साल ऐसे तीन शिक्षक भी नहीं ढूंढ पा रहा है जिनके कार्यों को केंद्र में प्रेजेंटेशन के बाद राष्ट्रीय ज्यूरी नेशनल टीचर अवार्ड हेतु चयनित कर सके।</p>
<p>इस बार भी राष्ट्रीय शिक्षक पुरस्कार के लिए हिमाचल प्रदेश के 25 से अधिक शिक्षकों ने आवेदन किए थे लेकिन शिक्षा विभाग की लापरवाही का ये आलम है कि इनमें से जो शिक्षक नेशनल अवार्ड के हकदार थे, उनको प्रेजेंटेशन के लिए राज्य स्तर पर भी बुलाया नहीं गया। जिला स्तर पर नेशनल टीचर अवार्ड के लिए तीन नाम फ़ाइनल किए जाते हैं जिनकी प्रस्तुति राज्य स्तर पर होती है। इधर, जिला हमीरपुर से केवल तीन ही शिक्षकों ने इस बार नेशनल अवार्ड के लिए आवेदन किया था, लेकिन इनमें से भी दो शिक्षकों को अच्छे कार्यों के पर्याप्त प्रमाणों के बावजूद प्रदेश स्तर पर प्रस्तुति का अवसर तक नहीं दिया गया। जिससे इन पुरस्कारों पर हावी राजनीति का असर साफ झलक उठा है ।</p>
<p><span style=”color:#c0392b”><strong>शिक्षकों हाजरी लगाकर भेजा घर</strong></span></p>
<p>मानव संसाधन मंत्रालय ने स्पष्ट रूप से जिला स्तरीय चयन समिति में डिप्टी डायरेक्टर का होना अनिवार्य बनाया है लेकिन हैरत है कि इस बार शिमला से कोई 2 व्यक्ति भेजकर खानापूर्ति करते हुए शिक्षकों को 9 जुलाई को कई घंटे इंतज़ार करवाया और बाद में हाजरी लगवाकर घर भेज दिया गया। आए हुए सदस्यों के पास इन शिक्षकों के उन कामों का कोई भी विवरण नहीं था। जो कि राष्ट्रीय पुरस्कार फार्म में उन्होंने भरा था जबकि जो प्रूफ उसमें लगाए गए थे, उनका भी कोई ज़िक्र नहीं था। मूल्यांकन करने वालों की नज़र में शिक्षकों के कामों की कोई औकात नहीं दिखती है और एक शिक्षक ओंकार सिंह के लिए तो यह जीवन का अंतिम अवसर था क्योंकि सेवानिवृत होने के बाद उनको 6 माह में उपलब्ध यह एकमात्र अवसर था।</p>
<p>चंबा के एक प्रिंसिपल विकास महाजन को राष्ट्रीय अवार्ड हेतु चुना गया जिसने अपने स्कूल में बच्चों के लिए ब्लेज़र शुरू किए थे, लेकिन दख्योड़ा के प्राथमिक स्कूल में बच्चों के लिए मुफ्त ब्लेज़र बांटने वाले शिक्षक को भी शिमला में प्रस्तुति का अवसर तक नहीं मिला। दूसरे शिक्षक विजय कुमार की कार्य प्रोफाइल की मानव संसाधन मंत्रालय सचिव खुद सराहना कर पूरे प्रदेश हेतु अनुकरणीय बता चुके हैं मगर उनको भी शिमला में प्रस्तुति देने तक का अवसर न मिला। जबकि तीन ही नाम होने के चलते इनको यहां रिजकेट करने का कोई प्रावधान नहीं है।</p>
<p><span style=”color:#2980b9″><strong>खास शिक्षा में भी हिमाचल के किसी शिक्षक का ज़िक्र नहीं</strong></span></p>
<p>नियमों के विपरीत बनी जिला चयन समिति में जिला का कोई व्यक्ति न था और शिमला से आए हुए कमेटी सदस्य किसी भी शिक्षक के कुछ समय बीआरसीसी रहने के बाद वापिस स्कूल में ज्वाइन करने पर भी उसको तीन साल अवार्ड का पात्र नहीं मानते, जबकि नेशनल अवार्ड में प्रावधान ऐसा नहीं है। स्टेट अवार्ड में ऐसी शर्त लगाकर योग्य शिक्षकों को सरकार पहले से ही दरकिनार कर रही है। इस तरह स्टेट अवार्ड में शिक्षा विभाग के कुछ अधिकारी अपने चहेते शिक्षकों को अपने स्तर पर स्टेट अवार्ड गत साल से दे रही है। भले ही इन शिक्षकों के सेवाकाल और शेष योग्यता नियम भी पूर्ण न हों। ऐसे में स्टेट से लेकर नेशनल अवार्ड केवल जुगाड़ का खेल बन गया है और शिक्षा विभाग ने साल 2019 में खास शिक्षा के तहत भी हिमाचल के किसी शिक्षक का ज़िक्र नहीं किया है।</p>
<p>समग्र शिक्षा अभियान खुद तो स्कॉच अवार्ड लेकर जशन मना रहा है लेकिन इसे बीआरसीसी फील्ड में अच्छे काम कर रहे शिक्षकों को खास शिक्षा में पहचान तक नहीं दिलवा पा रहे हैं। ऐसे खास शिक्षकों में से स्टेट अवार्ड हेतु नॉमिनेशन सरल होता है और शिक्षकों के नवाचरों को स्थान और पहचान मिलती है। ऐसे में शिक्षकों की कोई कद्र नहीं है। नेशनल अवार्ड से वंचित किए गए शिक्षकों को राज्य शिक्षक पुरस्कार हेतु विभाग के अपने मनोनयन में शामिल तक नहीं किया जा रहा है जिससे निराश एक शिक्षक ने यह मामला हाईकोर्ट में दायर करने का मन बना लिया है।</p>
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