➤ हाईकोर्ट ने तीसरे बच्चे के जन्म पर महिला को मातृत्व अवकाश देने का ऐतिहासिक फैसला सुनाया
➤ संविधान के अनुच्छेद 15, 21, 42 और 51 के आधार पर महिला की गरिमा को दिया महत्व
➤ विभाग द्वारा अवकाश आवेदन खारिज करने पर अदालत का हस्तक्षेप, 12 हफ्ते का अवकाश देने के आदेश
हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण और ऐतिहासिक निर्णय देते हुए याचिकाकर्ता महिला को तीसरे बच्चे के जन्म पर मातृत्व अवकाश प्रदान करने का आदेश जारी किया है। यह फैसला न्यायाधीश ज्योत्सना रिवाल दुआ की एकल पीठ ने सुनाया। अदालत ने स्पष्ट किया कि इस मामले को संविधान के अनुच्छेद 15, 21, 42 और 51 में निहित महिला की गरिमा और मौलिक अधिकारों के दृष्टिकोण से देखा जाना चाहिए।
अदालत ने कहा कि केंद्रीय सिविल सेवा अवकाश नियम 1972 के अंतर्गत भले ही तीसरे जैविक बच्चे पर मातृत्व अवकाश का प्रावधान नहीं है, लेकिन मातृत्व लाभ अधिनियम 1961 (संशोधित 2017), धारा 5(3) ऐसे मामलों में अवकाश की अनुमति देता है। हालांकि अवकाश की अवधि पहले दो बच्चों की तुलना में कम होती है।
इस मामले में याचिकाकर्ता, जो 43 वर्षीय टीजीटी शिक्षक हैं, ने अपने तीसरे बच्चे के जन्म के लिए मातृत्व अवकाश का आवेदन किया था। विभाग ने नियमों का हवाला देते हुए आवेदन खारिज कर दिया था। लेकिन अदालत ने यह पाया कि यह महिला का दूसरे पति से पहला जैविक बच्चा है। महिला की पहली शादी से दो बच्चे हैं, जिनमें से एक गंभीर बीमारी से ग्रसित है। वहीं उसके दूसरे पति ने अपनी पहली पत्नी और बच्चे को सड़क हादसे में खो दिया था।
अदालत ने इन संवेदनशील परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए कहा कि महिला को मातृत्व अवकाश देने से इनकार करना उसके मौलिक अधिकारों का हनन है। इसलिए अदालत ने राज्य सरकार को निर्देश दिया कि आवेदन की तारीख से 12 सप्ताह का मातृत्व अवकाश प्रदान किया जाए। यह फैसला अनुराधा बनाम हिमाचल प्रदेश मामले में दिया गया है।



