हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट ने एक अहम फैसला सुनाया है। हाईकोर्ट ने किसी भी महिला को ट्राइबल व्यक्ति से शादी करने पर अनुसूचित जनजाति का लाभ देने से इंकार कर दिया है। कोर्ट ने होली के केंद्रीय विद्यालय में तैनात एक महिला के मामले में फैसला सुनाया है। कोर्ट ने जिला चंबा के होली के केंद्रीय विद्यालय प्रशासन के उस फैसले को सही करार दिया है जिसमें प्रशासन ने महिला के अनुसूचित जनजाति के प्रमाणपत्र को निरस्त करते हुए बर्खास्त कर दिया था।
प्रदेश हाईकोर्ट के कार्यकारी मुख्य न्यायाधीश जस्टिस संजय करोल और जस्टिस अजय मोहन गोयल की पीठ ने यह फैसला सुनाया। मामला जिला चंबा की होली पंचायत के गांव गुससाल की विजय लक्ष्मी का है। विजय लक्ष्मी का जन्म उतर प्रदेश में एक ब्राह्मण परिवार में हुआ और 1972 में गांव गुस्साल के प्रेम चंद से शादी कर ली। प्रेम चंद से शादी करने के बाद उसने अनुसूचित जनजाति प्रमाणपत्र को आवेदन दिया। जिला चंबा की उपतहसील के कार्यकारी मजिस्ट्रेट ने उसे ये प्रमाणपत्र दे दिया।
इस प्रमाणपत्र के आधार पर विजयलक्ष्मी ने 1986 में केंद्रीय विद्यालय संगठन में प्राइमरी टीचर की नौकरी हासिल कर ली। लेकिन 2011 में प्रशासन को पता चला कि, ये प्रमाणपत्र झूठा है और 28 फरवरी 2011 को स्कूल प्रबंधन ने एक्शन लेते हुए उसे नौकरी से बर्खास्त कर दिया। केंद्रीय विद्यालय प्रशासन के इस फैसले को महिला ने कोर्ट में चुनौती थी। जिसके बाद हाईकोर्ट ने इस पर फैसला सुनाया है। हाईकोर्ट का कहना है कि किसी महिला के महज ट्राइबल व्यक्ति से शादी कर देने से वह अनुसूचित जनजाति को मिलने वाले लाभों और अनुसूचित जनजाति के स्टेट्स की हकदार नहीं हो सकती।