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हाईकोर्ट ने कृषक प्रमाणपत्र निर्देशों में संशोधन के आदेश दिए, गैर-कृषकों के दुरुपयोग पर अदालत सख्त

➤ हाईकोर्ट ने कृषक प्रमाणपत्र संबंधी 18 मार्च 2010 के निर्देशों में खामियां बताकर इन्हें संशोधित करने को कहा
➤ फॉर्म A-I में ‘व्यक्तिगत खेती’ की स्पष्ट घोषणा नहीं मिलने पर अदालत ने जताई आपत्ति
➤ गैर-कृषकों द्वारा दुरुपयोग की शिकायतों के बाद अदालत ने मंडी की पैलेस कॉलोनी जैसे उदाहरण दिए


हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट ने कृषक प्रमाणपत्र जारी करने संबंधी 18 मार्च 2010 के मौजूदा निर्देशों में गंभीर खामियां पाते हुए राज्य सरकार को तत्काल संशोधन करने के निर्देश दिए हैं। अदालत ने कहा कि इन निर्देशों को अधिनियम के मूल उद्देश्य के अनुरूप बनाया जाना जरूरी है, ताकि वे लोग जो कृषक नहीं हैं या जिनके पास कृषि भूमि नहीं है, इस प्रक्रिया का दुरुपयोग न कर सकें

मुख्य न्यायाधीश गुरमीत सिंह संधावालिया और न्यायाधीश जियालाल भारद्वाज की खंडपीठ ने स्पष्ट किया कि वर्तमान व्यवस्था में गैर-कृषक व्यक्तियों द्वारा प्रमाणपत्र हासिल किए जाने की घटनाएं सामने आई हैं। कोर्ट ने पाया कि 2010 के निर्देशों में कृषक की परिभाषा होते हुए भी फॉर्म A-I में यह स्पष्ट घोषणा नहीं मांगी जाती कि आवेदक व्यक्तिगत रूप से खेती कर रहा है, जैसा कि हिमाचल प्रदेश भू-धारण और भूमि सुधार अधिनियम 1972 की धारा 2(4) में वर्णित है।

अदालत ने यह भी उल्लेख किया कि फॉर्म A-I में केवल इतना भर मांगा जाता है कि व्यक्ति कृषक परिवार से हो और उसके पास भूमि हो। इस अस्पष्टता के चलते झूठी घोषणा देना आसान हो जाता है।

कोर्ट ने पाया कि पटवारी स्तर पर होने वाला सत्यापन भी केवल भूमि के मालिकाना हक और कब्जे की जांच तक सीमित है। भूमि पर वास्तव में खेती होती है या नहीं—इसकी कोई जमीनी जांच नहीं की जाती।

अदालत ने 9 सितंबर और 30 अक्तूबर 2025 को प्राप्त ई-मेल शिकायतों का हवाला देते हुए कहा कि अवैध कृषक प्रमाणपत्र जारी होने के मामलों में वृद्धि हुई है। उदाहरण के तौर पर मंडी की पैलेस कॉलोनी का उल्लेख किया गया, जो लंबे समय से कृषि भूमि नहीं रही है, फिर भी यहां प्रमाणपत्र जारी किए जाने की शिकायतें सामने आईं।

मामले की अगली सुनवाई 24 फरवरी 2026 को होगी।