Follow Us:

इस्केमिक स्ट्रोक का अब जल्द लगेगा पता, IIT मंडी के शोधकर्ताओं ने बनाया पोर्टेबल डिवाइस

बीरबल शर्मा |

भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान मंडी के शोधकर्ताओं ने स्ट्रोक का जल्द से जल्द पता लगाने का एक आसान, पोर्टेबल और सस्ता डिवाइस तैयार करने का प्रस्ताव दिया है और इसका विकास किया है. स्ट्रोक की वजह मस्तिष्क में सही से खून नहीं पहुंचना है जिसका पता लगाने के इस डिवाइस के विकास में पीजीएमआईईआर चंडीगढ़ का सहयोग लिया गया है.

डिवाइस और इसके उपयोग के बारे में हाल ही में आईईईई सेंसर जर्नल में एक शोध पत्र प्रकाशित किया गया था.यह शोध पत्र संयुक्त रूप से डॉ शुभजीत रॉय चौधरी, एसोसिएट प्रोफेसर, स्कूल ऑफ कंप्यूटिंग एंड इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग, आईआईटी मंडी, और उनके छात्र श्री दालचंद अहिरवार के साथ-साथ डॉ. धीरज खुराना, पोस्ट ग्रेजुएट इंस्टीट्यूट फॉर मेडिकल एजुकेशन एंड रिसर्च, चंडीगढ़ ने तैयार किया है.

इस्केमिक स्ट्रोक का भारतीय आंकड़ा चिंताजनक है.हर साल हर 500 भारतीयों में एक स्ट्रोक को लगता है.इसका कारण मस्तिष्क में पूरा खून नहीं पहुंचना या रुक-रुक कर पहुंचना है. वर्तमान में मैग्नेटिक रेज़ोनेंस इमेजिंग (एमआरआई) और कंप्यूटर टोमोग्राफी (सीटी) को इस्केमिक स्ट्रोक का पता लगाने का सबसे सटीक परीक्षण (गोल्ड स्टैंडर्ड) माना जाता है. ये निदान निस्संदेह भरोसंद हैं लेकिन इनके लिए इन्फ्रास्ट्रक्चर और लागत काफी अधिक है.इस वजह से यह भारत की बड़ी आबादी की पहुंच से परे है. गौरतलब है कि देश में प्रत्येक 10 लाख लोगों पर केवल एक एमआरआई सेंटर हैं.

शोध के बारे में आईआईटी मंडी के एसोसिएट प्रोफेसर डॉ. शुभजीत रॉय चौधरी ने बताया, “हमारा प्रयास जहां मरीज है वहीं इस्केमिक स्ट्रोक की सटीक जांच के लिए सस्ता डिवाइस तैयार करना है. खास कर गांव-देहात में मरीजों को इसका बहुत लाभ होगा. साधनहीन और दूरदराज के पिछड़े क्षेत्रों में समय से निदान मिलेगा.

शोध के बारे में आईआईटी मंडी के शोध विद्वान दालचंद अहिरवार ने कहा, “हमें प्राप्त जानकारी के अनुसार संयुक्त मैट्रिक्स से खून में हीमोग्लोबिन की अस्थायी गतिविधि दिखती है, जिसकी मदद से उस हिस्से के टिश्यू में खून के नहीं पहुंचने या रुक-रुक कर पहुंचने का आसानी से पता लगाया जा सकता है .हम ने इस्केमिक स्थितियों का अध्ययन करने के लिए ऑक्सीजन सैचुरेशन, संबंधित हिस्से में ऑक्सीजन की खपत और खून की मात्रा सूचकांक जैसे बायोमार्करों का उपयोग किया है जो अन्य तकनीकों की तुलना में इस्केमिक स्थितियों का अधिक सटीक अनुमान दे सकते हैं.