<p>हिमाचल की कांगड़ा चाय भारत ही नहीं विश्व भर में मशहूर है। भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने खुद कांगड़ा चाय अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप को भेंट की थी। चाय विशेषज्ञ भी दार्जलिंग चाय के मुकाबले कांगड़ा चाय को बहुत अधिक पसंद करते हैं। पर अब हिमाचल की कांगड़ा चाय अपनी महक खो रही है, इससे भारत में चाय के प्रेमियों को भी अधिक नुकसान हो रहा है।</p>
<p>पिछले 25 साल से कांगड़ा चाय अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ रही है। पालमपुर और धर्मशाला के चाय बागान मालिक अपनी भूमि को रियल स्टेट में मिलते अच्छे रेट के कारण बेच रहे है। वही, प्रशासन भी 160 वर्षीय विरासत के प्रति उदासीन रहा है।</p>
<p><span style=”color:#c0392b”><strong>कम होते चाय के बागान</strong></span></p>
<p>पिछले 25 साल से कांगड़ा चाय के बागान क्षेत्र जिसके रिटेल दाम दार्जलिंग से 40 से 50 प्रतिशत से अधिक है, कम होते जा रहे है। भारत के चाय बोर्ड के आंकड़ो के मुताबिक 2300 एकड़ जमीन पर चाय की खेती होती है पर जमीनी स्तर पर केवल 1150 एकड़ पर ही खेती होती है। </p>
<p>"मौजुदा समय में चाय की 5 फैक्ट्रियां धर्मशाला, पालमपुर, भवारना, बैजनाथ और वीर हर साल 10 से 11 लाख किलो चाय पैदा करते है। यदि सही तरीके से बागान को मेंटेन किया जाए तो पैदावार 20 लाख किलो के पार की जा सकती है" टी प्रोमोशन ऑफिसर पियार चंद ने बताया।</p>
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