विकास के नाम पर खड़ी पहाड़ियों पर बसे किन्नौर को विद्युत परियोजनाओं ने पैसा कमाने के लालच में छलनी कर दिया है। पावर प्रोजेक्टस के लिए अंधाधुंध ब्लास्टिंग, टनल का निर्माण करने के लिए पहाड़ों का सीना छलनी किया जा रहा है। विकास के नाम पर किन्नौर के खूबसूरत पहाड़ों को अनगिनत जख्म दिए हैं। ब्लास्ंटिंग के धमाकों की गूंज से स्थानीय लोगों के आशियाने उजड़ गए।
किन्नौर की नदी-नालों का रुख़ मोड़कर परियोजनाओं ने अपने बिजली उत्पादन करने के लिए आने वाली पीढ़ियों को भी संकट पैदा कर दिया है। किन्नौर में बन रहे प्रोजेक्ट से जलवायु परिवर्तन होने लगा है। पहाड़ियों पर बेमौसम बर्फबारी, बारिश और मौसम का अचानक गर्म होना परेशानी का सबब बन गया है। सबसे बड़ी बात तो ये है कि विद्युत परियोजनाओं के बाबजूद सबसे ज़्यादा बिजली कट किन्नौर में ही लगते हैं। किन्नौर में छोटी बड़ी लगभग 12 परियोजनाएं हैं। किन्नौर की पहाड़ियां कांपने लगी हैं प्रकृति ने भी कई बार परियोजनाओं को अपने तरीके से संकेत दिए हैं। लेकिन सभी परियोजना कंपनियों और सरकार को प्रकृति का भी कोई डर नहीं रहा है।
स्थानीय लोगों का कहना है कि किन्नौर में विद्युत परियोजनाएं स्थापित होने के बाद किन्नौर के वातावरण में बदलाव आया है। सेब की फसल से लेकर अन्य फसलें भी अब उतनी उपजाऊ नहीं रही। गांव के चश्मों के जलस्त्रोत सूख गए और सुखा पड़ने लगा है। गांव और सड़कों में लगातार पहाड़ियां खिसकने लगी हैं। जिला में बेमौसमी बारिश ने किसानों और बागवानों की मुश्किलें बढ़ा दी। कंपनियों ने अपने काम के लिए यहां के भोले-भाले लोगों को बेवकूफ बनाकर उनकी भावनाओं से खिलवाड़ किया है। कई जगह सतलुज नाले के रूप में तब्दील हो चुकी है। लोगों को झूठे सब्ज़बाग तो दिखाए गए लेकिन उनको मिला कुछ नही। यहां तक कि किन्नौर में बिजली कट सबसे ज़्यादा लगते हैं। फिर भला किन्नौर को लोगों को क्या लाभ मिला।
सेवानिवृत्त आईएएस अधिकारी और किन्नौर के रहने वाले आरएस नेगी कहते हैं कि विद्युत परियोजनाओं में किन्नौर के लोगों का जल, जमीन और पहाड़ बर्बाद हुई। बदले में उन्हें रोज़गार से लेकर रॉयल्टी जो मिलनी चाहिए थी वह नहीं मिली। बेतरतीब और अवैज्ञानिक कटाव ने किन्नौर की सूरत बेरंग कर दी है। यहीं से नदी नाले हिमाचल ही नही देश के लिए पानी का मुख्य साधन है यदि इनको उजाड़ा गया तो आने वाली पीढियां हमें कोसेंगी।