हिमाचल

दैवीय शक्तियों का प्रमाण है ‘देव हुरंग नारायण काहिका’ उत्सव, सदियों से निभाई जा रही ये परंपरा

चौहार घाटी के आराध्य देव श्री हुरंग नारायण का 5 साल बाद मनाए जाने वाला विशाल उत्सव जिसे काहिका के नाम से जाना जाता है. घाटी के लोग देव संस्कृति तथा देव समाज पर अटूट विश्वास रखते हैं. देव श्री हुरंग नारायण घाटी की जनता के लिए किसी सर्वोच्च न्यायालय से भी कम नहीं है. मान्यता है कि देव श्री हुरंग नारायण चौहार घाटी ही नहीं बल्कि जिला मंडी में सबसे बड़े देवता के रूप में देव की राजाओं के समय से मान्यता रही है. आज काहिका मेले के समापन पर देवता संग स्थानीय लोगों ने वाद्य यंत्रों सहित नाटी डाली तथा अपने आराध्य देव का गुणगान किया.

देव हुरंग नारायण के पुजारी इंदर सिंह ने बताया कि काहिका उत्सव में देवता ने देवेश्वर व्याधियों का समूल नाश कर भक्तजनों को सुख संपन्नता, निरोगी काया का आशीर्वाद दिया.

देव हुरंग नारायण से जुड़ी प्रचलित कथा..

स्थानीय लोगों के अनुसार एक बार एक अनजान बालक शिऊन गांव में आया और गांव के एक स्थान पर बैठ गया. बालक को रास्ते में बैठा देखकर राह चलते दब गांव के लोग उससे नाम पूछते थे तो वह अपना नाम नारायण बता कर चुप हो जाता था. शाम तक वह एक ही जगह बैठा रहा. जब रात होने लगी तब गांव के लोग उसके पास गए. पहले उससे उसका नाम पूछा तो वह नारायण कह कर चुप हो गया. लोगों ने उसके घर, गांव के बारे में पूछा तब भी वह बालकर चुप ही रहा. रात होते देख गांव के लोगों ने उससे पूछा कि क्या वह इस गांव में रहना पसंग करेगा.

बालक ने हां में सिर हिलाया था. वे लोग उसे गांव में ले आए और उसे एक बूढ़ी औरत के पास रहने की व्यवस्था कर दी. जाने से पहले गांव के लोगों ने बालकर से कहा कि वह गांव के सार पशुओं की जंगल में चराने ले जाया करें, जिसे बालक ने खुशी-खुशी मान लिया.

दूसरे दिन से नारायण सवेरे गांव के सारे पशुओं को चराने के लिए जंगल में ले जाने लगा. वह अपने पास एक छड़ी रखता था. गांव में पानी की समस्या थी. लोगों को दूर-दूर से पानी लाना पड़ता था परंतु नारायण को पशुओं को पानी पिलाने के लिए कोई समस्या नहीं थी.

जब पशु चरने के बाद पानी पीने के लिए आते तो नारायण अपनी छड़ी से जहां कहीं भी जमीन खोदते थे वहां पानी निकल जाता. सारे पशु वहां पानी पीकर अपनी प्यास बुझाते थे. फिर नारायण उसी पानी को ढंक देते थे और बहता पानी बंद हो जाता था.

गांव के चार व्यक्ति इसका पता लगाने के लिए छिप कर नारायण का पीछा करने लगे परंतु उन्हें एहसास हुआ कि नारायण साधारण व्यक्ति नहीं, देवता हैं और वे उनसे क्षमा मांगने के लिए उनके पास जाने लगे, तभी नारायण वहां से लोप हो गए. जल्दबाजी में नारायण वह पानी बंद करना भूल गए. वहां पानी बढ़ता गया और अब हिमरी गंगा बन गई है.

जानिए क्या है काहिका उत्सव….

पापों से मुक्ति के लिए काहिका उत्सव मनाया जाता है। बताते हैं कि मनुष्य की देह में देव हुरंग नारायण कई प्रकार के पाप से घिर गए थे। इसी लोक में पापों से मुक्ति को भगवान ने देव लोक से नरवेदी पंडित बुलाए थे, जिनके हाथों पापों से मुक्ति को अपना छिद्रा करवाया। काहिका उत्सव में नरवेदी पंडित जिन्हें देव हुरंग ने देवलोक से लाने के बाद जोगेंद्रनगर के हराबाग में पनाह दे रखी है। यही नरवेदी पंडित नड़ पांच वर्ष के उपरांत मनाए जाने वाले उत्सव में अहम भूमिका निभाते हुए देव हुरंग नारायण का छिद्रा करते हैं।

तीन दिन तक गड्ढे में दबाया जाता था नड़…

किवंदती है कि वर्षो पूर्व चारवेद के नीचे मुरगन स्थान पर तीन दिन तक नड़ को ज़िंदा गड्ढे में दबाया जाता था और काहिका के अंतिम दिन उसे निकालकर देव शक्ति से फिर जिंदा किया जाता था। अब यह प्रथा मुरगन में तबदील हो चुकी है। देवता के साथ-साथ आम लोगों का छिद्रा करते समय नरवेदी पंडित के परिवार के सदस्य यानी नड़ जाती के लोग हाथों में लकड़ी के लिंग लेकर अश्लील भाषा का जमकर प्रयोग करते हैं। बताते हैं कि ऐसा करने से देव प्रसन्न होते हैं और नड़ परिवार पर भी उत्सव के दौरान कोई विपदा नहीं आती

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