साठ साल बाद हिमाचल की राजनीति में एक नया अध्याय शुरू हुआ है. 1962 से लेकर 2017 तक हिमाचल प्रदेश की राजनीति महज कुछ परिवारों के इर्द गिर्द ही घूमती रही है. 2017 में जय राम ठाकुर मुख्यमंत्री बने तो लगा कि कुछ नया हुआ है मगर पांच साल बाद ही फिर से कुछ नया होना अब यह संकेत देने लगा है कि हिमाचल की राजनीति अब चंद परिवारों की बपौती न रह कर आम आदमी के लिए भी सुलभ हो गई है.
जयराम ठाकुर जब मुख्यमंत्री बने थे तो इस बात को लेकर जोर शोर से चर्चा होती रही कि एक मिस्त्री का बेटा मुख्यमंत्री बन गया जबकि अब एक चालक का बेटा इस इतिहास को दोहरा गया तो लोगों में यह बात भी धीरे धीरे जाने लगी है कि हिमाचल अब इन चंद परिवारों की राजनीतिक चंगुल से आजाद होने लगा है. पंडित सुख राम हिमाचल की राजनीति का एक बड़ा चेहरा रहे हैं, 1962 से राजनीति में आए और 2021 तक पूरी तरह से छाए रहे. अपने बेटे अनिल को भी स्थापित कर दिया व पोते आश्रय को भी राजनीतिक राह में डाल दिया.
इसी तरह से 1962 से राजनीति में सक्रिय रहे वीरभद्र सिंह ने 2021 तक प्रदेश की राजनीति में जमकर अपना डंका बजाया. अपनी पत्नी प्रतिभा सिंह व बेटे विक्रमादित्य को भी राजनीति की प्रथम पंक्ति तक पहुंचा दिया. प्रतिभा सिंह आज भी सांसद व प्रदेशाध्यक्ष हैं तो विक्रमादित्य दूसरी बार विधायक बन चुके हैं.
तीसरा राजनीतिक ध्रुव प्रेम कुमार धूमल का रहा है. जिन्होंने सांसद के बाद मुख्यमंत्री रहते हुए हिमाचल में राजनीतिक उंचाईयां छूई व बेटे अनुराग सिंह ठाकुर को कई बार सांसद व केंद्र में मंत्री पद तक पहुंचाने में कामयाबी हासिल की. मुख्यमंत्री भले ही दो बार शांता कुमार भी रहे मगर उन्होंने अपने परिवार को राजनीति से दूर रखा. डॉ वाईएस परमार के बेटे कुश परमार भी ज्यादा लंबे नहीं चल सके जबकि राम लाल ठाकुर की विरासत संभाले रोहित ठाकुर भी राजनीति की प्रथम कतार में आने के लिए अभी जदोजहद कर रहे हैं.
इसी बीच 2017 और उसके बाद 2022 हिमाचल प्रदेश के लिए नए राजनीतिक समीकरण लेकर आया है. एक छोटे से जिले हमीरपुर से चालक के बेटे सुखविंदर सिंह सुक्खू मुख्यमंत्री की कुर्सी पर विराजमान हो गए हैं जबकि उना जैसे जिले जहां से अभी तक कोई भी इतने उंचे ओहदे पर नहीं था वहां से एक पत्रकार मुकेश अग्निहोत्री ने उपमुख्यमंत्री जैसा अहम ओहदा पा लिया है. नया राजनीतिक दृश्य यह साबित करने के लिए पर्याप्त है कि हिमाचल प्रदेश के तीन परिवारों की राजनीति अब चल तो रही है मगर सत्ता की चाबी उनके हाथ में कम से कम आज के दिन नहीं है. ये परिवार आज प्रदेश की राजनीति में निर्णायक की भूमिका में नहीं हैं और ऐसा पहली बार इस प्रदेश में हुआ है.
अब देखना यह होगा कि सत्ता के चरम तक पहुंचे ये तीनों ही परिवार जो भले ही हाशिए पर नहीं हैं मगर किसी बड़ी भूमिका में भी नहीं हैं आने वाले दिनों में फिर से यहां तक पहुंचने के लिए क्या रास्ता अपनाते हैं. बहरहाल तो हिमाचल का राजनीतिक परिदृश्य पूरी तरह से बदल गया है और नए चेहरे, नया जोश अपने को कितने सही साबित कर पाते हैं.
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