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निजी अस्पताल का कारनामा, प्रवासी मजदूर को मामूली सी बीमारी के लिए थमा दिया 50 हज़ार का बिल

पी. चंद |

प्रदेश में निजी अस्पतालों का खर्च लोगों पर क़हर बनकर टूटने लगा है। हालात अब ऐसे हो चुके हैं कि निजी अस्पतालों का खर्च लोगों की जान पर सबब बन गया है। यदि व्यक्ति को इमरजेंसी में निजी अस्पताल का रूख करना पड़ता है तो बेशक उसकी जान बच जाए, लेकिन निजी अस्पतालों के महंगे खर्च उन्हें खाता है। आख़िर ऐसा हो भी क्यों न… अग़र प्रदेश में 108 एंबुलेंस और सरकारी अस्पतालों में सुविधाओं मिलती तो क्यों लोग निजी अस्पतालों को रूख करते…

इसी कड़ी में बरोटीवाला के एक निजी अस्पताल मल्होत्रा क्लीनिक का एक कारनामा सामने आया है। यहां अस्पताल प्रशासन ने एक महिला को मामूली से इलाज के लिए 50 हज़ार का बिल थमा दिया है। दरअसल, महिला डिप्रेशन की शिकार थी और डिप्रेशन की गोलियां भी ख़ाती थी। अचानक बेहोश होने पर उसे निजी क्लीनिक में भर्ती करवाया और उसे यहां 3 दिन तक रख़ा गया। लेकिन, जब 3 दिन बाद महिला को डिस्चार्ज के बाद बिल दिया गया तो उसे देखकर उनके और उनके परिवार के होश उड़ गए।

3 दिन की नॉर्मेल बीमारी के लिए 50 हज़ार रुपये का बिल देखकर घरवालों ने क्लीनिक रिसेप्शन में भी इसका सवाल किया, लेकिन वहां कुछ चीजें गिनाकर उन्हें टाल दिया गया। इसके बाद पीड़ित परिवार ने बद्दी के तहसीलदार को शिकायत देकर अस्पताल के खिलाफ कार्रवाई करने की मांग भी की। महिला के बेटे का कहना है कि अचानक बेहोश होने पर उन्हें जल्दबाजी में निजी अस्पताल ले जाया गया। लेकिन यहां तो उनके सिर पर और भी कर्ज चढ़ गया। ये लोग प्रवासी मजदूर हैं।