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सेवा का अनोख़ा जज़्बा, भूखे प्यासे दाह संस्कार में मदद करते हैं 80 साल के हरी चंद

<p>आज इस भागदौड़ की जिंदगी में इंसान अपने मतलब तक ही सीमित होकर रह गया है। मानव हमेशा अपने स्वार्थ सिद्धि में ही लगा रहता है और हमारे पास किसी दूसरे के लिए समय नहीं है। पुराने वक़्त में जब गांव में शादियां हुआ करती थी या किसी की मृत्यु होती थी तो गांव के लोग पूरे समर्पण से उन लोगों की सहायता करते थे। लेकिन आज इस भागदौड़ भरी जिंदगी में हमारे पास एक दूसरे के लिए समय ही नहीं बचा। हम केवल अपने मतलब के लिए ही काम कर रहे हैं लेकिन जरूरी नहीं कि हरकोई ऐसा हो।</p>

<p>इस वाक्या को फेल कर दिखाया है हरी चंद ने….आज भी वे निस्वार्थ भाव से उन लोगों की सहायता करते हैं जिन्हें उनकी जरूरत होती है। हरी चंद शर्मा उपमंडल भोरंज के गांव खतनाल पोस्ट ऑफिस लुद्दर महादेव तहसील भोरंज जिला हमीरपुर के निवासी हैं। इन्होंने अध्यापक के रूप में सेवा देकर अपने कई विद्यार्थियों को ऊंचे पदों पर पहुंचाया है। इनका एक बेटा और तीन बेटियां हैं। इनकी समाज सेवा की प्रेरणा से एक दोहता आर्मी में मेजर पद पर तैनात है और दूसरा एन डी ए पास करके इंडियन एयर फोर्स में ट्रेनिंग ले रहा है।</p>

<p>अध्यापक के पद से सेवानिवृत्ति के बाद इन्होंने समाज सेवा की ओर ध्यान दिया। आज इनकी उम्र 80 साल हो चुकी है। सेवा के तौर पर यदि गांव या इनकी पंचायत या नजदीक के गांवों में किसी व्यक्ति की मृत्यु हो जाए तो हरिचंद भूखे प्यासे ही उनकी मदद करने के लिए पहुंच जाते हैं। खुद ही चिता को लगाते हैं जब तक दाह संस्कार पूरा ना हो जाए तब तक श्मशान घाट में ही रहते हैं। चाहे रात भी हो जाए आज तक यह भूखे प्यासे रहकर ही सैंकड़ों दाह संस्कार कर चुके हैं। जैसे ही इनको किसी की मृत्यु का समाचार प्राप्त होता है तो यह वहां पर उनकी मदद करने के लिए पहुंच जाते हैं जिस कारण भोरंज के गांवों यह काफी प्रसिद्ध हो चुके हैं।</p>

<p>निस्वार्थ भाव से यह समाज सेवा में लगे रहते हैं। 80 साल की उम्र होने पर इन्हें घर वाले मना भी करते हैं कि आप अब दाह संस्कार करने के लिए ज्यादा देर ना बैठे क्योंकि अब आपकी सेहत भी ठीक नहीं रहती। लेकिन हरिचंद किसी की परवाह किए बिना अपने समाज सेवा के इस कार्य में लगे रहते हैं। इस संबंध में हरी चंद का कहना है कि मैं किसी के दाह संस्कार करने के लिए जाता हूं तो उसे पूरा करके ही वापस आता हूं। मुझसे अधूरा काम छोड़कर वापस नहीं आया जाता।</p>

<p>वैसे भी गुरबत के इस दौर में दाह संस्कार करवाने औऱ उसमें मदद करने वाले कामों से लोग अक्सर भागते नज़र आते हैं। ऐसे में हरी चंद का काम सराहनीय तो है ही… लेकिन समाज को ये भी संदेश देता है कि अगर सेवा करनी है तो वे जरूरी नहीं उसका काम का भाव देखकर की जाए। दाह संस्कार करवाने में मदद करना भी एक पुण्य का काम है और इसके लिए भी लोगों को मदद करनी चाहिए।</p>

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