<p>राज्यपाल आचार्य देवव्रत ने राजभवन में हिमाचल प्रदेश की लोक संस्कृति, लोक मान्यताओं और सामाजिक व्यवस्था पर आधारित कंचन शर्मा की पुस्तक 'हिमाचल प्रदेश एक सांस्कृतिक परिदृष्य' का विमोचन किया। इस अवसर पर राज्यपाल ने लेखकों, बृद्धिजीवियों और रचनाकारों का आह्वान किया कि वे अपने लेखों, पुस्तकों और कविताओं में ऐसी विचारशील सामग्री प्रस्तुत करें, जिससे समाज में व्याप्त कुरीतियों और कुप्रथाओं को समाप्त किया जा सके।</p>
<p>उन्होंने कहा कि इस युग में अन्ध विश्वास से ऊपर उठकर वैज्ञानिक दृष्टिकोण से मान्यताओं की विवेचना होनी आवश्यक है और लेखक इस दिशा में सार्थक पहल कर सकते हैं। इससे विकास की नई सोच पैदा होगी और वैज्ञानिक दृष्टिकोण सुदृढ़ होगा। कई परम्पराएं प्रतीक के तौर पर आरम्भ हुई लेकिन मध्यकाल में इन परम्पराओं में रूपान्तरण हुआ, जिससे पाखण्ड और अन्ध-विश्वास का जन्म हुआ।</p>
<p>उस समय के सन्तों और महापुरूषों ने इन पाखण्डों का प्रबल विरोध भी किया। पाखण्ड और अन्ध-विश्वास से जुड़ी सभी धारणाओं का विश्लेषण करने की आवश्यकता है ताकि समाज के सभी वर्गों का कल्याण सुनिश्चित हो सकें। उन्होंने कहा कि अपने स्वार्थ के लिए की गई हिंसा और हिंसक कार्य पाप हैं और अपने स्वार्थ के लिए गलत मान्यताओं का पोषण करना उचित नहीं है।</p>
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