<p>शिमला में इनदिनों पुस्तक मेला चल रहा है और इस बार यहां डेढ़ लाख पुस्तक लगाई गई है। डेढ़ लाख पुस्तकों के भंडार के बीच एक शख्स प्राचीन पुस्तक से लोगों का भविष्य बता रहा है। पंडित मनीराम न केवल आपके भविष्य के बारे में जानकारी देते हैं बल्कि भूत और वर्तमान में आपके साथ घटित हुई या हो रहे हर घटना का आपको सटीक विवरण उपलब्ध करवाते हैं।</p>
<p>ये विश्व कि विलुप्त होती पाबुचि लिपि में शताब्दियों पूर्व रचित चमत्कारी "सांचा विद्या" है जो सिरमौर जिला में प्रचलित सांचा परम्परा के अंतर्गत पाबुचि लिपि का प्रशिक्षण तथा तंत्र, मंत्र एवं ज्योतिषी गणना में आती है। पंडित मनीराम इसके माध्यम से लोगों के प्रश्नों का समाधान गेयटी थियेटर में कर रहे हैं। साथ ही स्थानीय व पर्यटक इस विद्या के बारे में जानकारी ले रहे हैं। भाषा एवं संस्कृति विभाग द्वारा इस विद्या को सरंक्षित करने का प्रयास किया जा रहा है।</p>
<p>सांचा विद्या में दैविक, भौतिक और पैतृक दोष का पता चलता है। सांचा पर पासा फेंक कर लोगों का भूत, भविष्य बताने की यह विद्या है। जिसमें अंक गणना से किताब में लिखे रहस्यों को जानकर किसी भी व्यक्ति की समस्या का निराकरण उपाय सुझाया जाता है। हस्त लिखित यह ऐसी किताब है जिसमें रोग दोष, विकृति, विकार, पीड़ा, देव दोष, पितृ दोष, शारीरिक और मानसिक, दैवीय और दैत्य दोष सहित हर प्रकार से मानव को पीड़ित करने वाली समस्याओं का निवारण, उपाय देव शक्ति व्यवहारिक प्रयोग और बौद्धिक शक्तियों का समावेश कर उपलब्ध करवाया गया है।<br />
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<span style=”color:#e74c3c”><strong>पाबुच पण्डित 924 साल पहले आये थे सिरमौर</strong></span></p>
<p>पण्डित मनीराम ने बताया उनके पूर्वज विक्रम संवत 1157 यानु आज से 924 वर्ष पूर्व पाबुच पण्डित सिरमौर आये थे। कश्मीर से राजस्थान जैसलमेर में बसे कश्मीरी पंडित की पाबुच पण्डित वंशावली है। उन्होंने बताया कि उनके पूर्वज कहते थे कि नाहन के राजा के पत्नी नहीं थी। जैसलमेर से वह अपने लिए रानी लाये और रानी के साथ पाबुच पण्डित नीताराम भी सिरमौर आये। वंश आगे चलाने के लिए राजा राजस्थान जैसलमेर से गर्भवती रानी लाये थे, यहां पहुंचते वक्त रास्ते में कालसी बाड़ वाला जगह में रानी बेटा हुआ। ऐसी जगह जहां ढांक था, रानी के इस बेटे का नाम ढाकेन्द्र प्रकाश रखा गया और राजा की वंशावली इस नाम से आगे बढ़ी।</p>
<p>रानी के साथ आये पाबुच पण्डित को सिरमौर रियासत के राजा ने खड़कांह में बसाया, ताकि यह पण्डित एकांत में रहकर ज्योतिष विद्या का अध्ययन और फलादेश संहिता का निर्माण पहाड़ी भाषा में कर सकें। राजा ने रियासत के कुछ काबिल विद्वानों को उनके साथ भेजा, जिसके बाद पीढ़ी दर पीढ़ी यह ज्योतिष के ग्रंथों की रचना करते गए। इन्होंने पाबुचि लिपि में करीब 400 ज्योतिष और प्रश्नावली संबधित ग्रंथ तैयार किये, जिसमें से 350 अभी भी सुरक्षित है। लगभग 1100 लोग विद्या को अभी भी जानते है।</p>
<p>पण्डित मनीराम ने कहा कि पाबुचि लिपि जीवित रखने के लिए स्कूलों में इसे मान्यता मिलनी चाहिए। इस लिपि में भी स्वर और व्यंजन है। जिसे नई पीढ़ी को सीखाया जाना चाहिए। पुस्तक मेले में पहली बार आये है, लोग इस विद्या को जानने के लिए उत्सुक दिख रहे है। भाषा एंव संस्कृति अकादमी ने इस किताब को हिंदी में भी ट्रांसलेट किया है।</p>
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