<p>मुहर्रम के दिन शिमला में शिया समुदाय ने मतमे हुसैन की याद में जुलूस निकाला। हुसैन की याद में शिया समुदाय द्वारा कृष्णानगर इमामबाड़े से बेरियर कब्रिस्तान तक ताजिया निकाला। समुदाय के लोगों ने अली या हुसैन कह कर जंजीरों से खून बहा कर हुसैन की शाहदत को याद किया गया। समुदाय के लोगों ने लोहे की जंजीरों और चमड़े की की बेल्ट से अपनी छाती और सिर पर वार किए। जिसमे दर्जनों युवा खून से लतपथ हो गए। जख्मी लोगों के उपचार के लिए डॉक्टर की टीम भी साथ थी। </p>
<p>मौलाना काजमी रजा नकवी का कहना है कि आपसी भाईचारे के लिए यह जुलूस निकला जाता है। मोहम्मद हुसैन ने सभी को मिलजुल कर रहने का सन्देश दिया है और आज के दिन हुसैन ने कर्बला में शहादत दी थी जिसे बड़े ग़मगीन रूप से हर साल मनाया जाता है। शिया समुदाय मुहर्रम के दस रोजे रखते है और अंतिम मुहर्र्म पर जुलूस निकला जाता है। हुसैन को उनके दुश्मनों ने कर्बला में मारा था। आज के दिन हुसैन की कुर्बानियों को याद किया जाता है।</p>
<p>कहा जाता है कि आज के ही दिन 1430 साल पहले कर्बला के मैदान में ‘इमाम हुसैन अलै ही स्लाम’ के परिवार सहित यजीद नामक दुराचारी ने मौत के घाट उतार दिया था। हिंसा के खिलाफ जंग की शहादत का मातम आज भी मनाया जाता है। इसमें इमाम हुसैन के परिवार सहित 72 लोगों में छह महीने का बच्चा ‘अलीअसगर अलै ही स्लाम’ तक को यजीद ने कर्बला के मैदान में भूख प्यास दस मुहर्रम को शहीद कर दिया गया। इस दौरान छोटे से बड़े शिया समुदाय के लोग खून बहाने से जरा भी नहीं कतराते। इस दिन लोगों को अपने शरीर को कष्ट देने में दर्द नहीं होता। शिया समुदाय के लोग इसे चमत्कार मानते हैं। जुलूस ताबूत खाना में ले जाकर समाप्त किया गया। इस दौरान प्रशासन ने भी सुरक्षा के पुख्ता इंतजाम किए थे।</p>
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