<p>सीटू, इंटक, एटक सहित दस केंद्रीय ट्रेड यूनियनों और दर्जनों राष्ट्रीय फेडरेशनों के आह्वान पर केंद्र और राज्य सरकारों की मजदूर विरोधी नीतियों के खिलाफ देशभर में राष्ट्रीय प्रतिरोध दिवस मनाया गया। इस दौरान देश के करोड़ों मजदूरों ने अपने कार्यस्थल और सड़कों पर उतरकर केंद्र सरकार की मजदूर विरोधी नीतियों के खिलाफ आंदोलन का बिगुल बजाया। सभी जिलाधीशों के माध्यम से भारत सरकार के प्रधानमंत्री को एक ज्ञापन प्रेषित किया गया।</p>
<p>इसमें केंद्र सरकार से श्रम कानूनों में मजदूर विरोधी परिवर्तन की प्रक्रिया पर रोक लगाने की मांग की गई। मजदूरों को कोरोना काल के तीन महीनों का वेतन देने, उनकी छंटनी पर रोक लगाने, हर व्यक्ति को महीने का दस किलो मुफ्त राशन देने और 7500 रुपये की आर्थिक मदद की मांग की गई। ट्रेड यूनियनों के संयुक्त मंच ने केंद्र और प्रदेश सरकारों को चेताया है कि वह मजदूर विरोधी कदमों से हाथ पीछे खींचें अन्यथा मजदूर आंदोलन तेज होगा।</p>
<p>शिमला में भी डीसी ऑफिस पर जोरदार प्रदर्शन हुआ जिसमें सैंकड़ों मजदूर शामिल रहे। प्रदर्शन में सभी यूनियनों ने कहा है कि देश में तालाबंदी के दौरान कई राज्यों में श्रम कानूनों को 'खत्म करने' के विरोध में 10 केंद्रीय ट्रेड यूनियनों और दर्जनों राष्ट्रीय फेडरेशनों ने देशव्यापी प्रदर्शन किये। कोरोना महामारी के इस संकट काल को भी शासक वर्ग और सरकारें मजदूरों खून चूसने तथा उनके शोषण को तेज करने के लिए इस्तेमाल कर रही हैं।</p>
<p>हिमाचल प्रदेश, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, गुजरात, राजस्थान में श्रम कानूनों में बदलाव इसी प्रक्रिया का हिस्सा है। अन्य प्रदेशों की तरह ही कारखाना अधिनियम 1948 में तब्दीली करके हिमाचल प्रदेश में काम के घण्टों को 8 से बढ़ाकर 12 कर दिया गया है। इससे एक तरफ मजदूरों की भारी छंटनी होगी वहीं दूसरी ओर कार्यरत मजदूरों का शोषण तेज़ होगा। फैक्टरी की पूरी परिभाषा बदलकर लगभग दो तिहाई मजदूरों को 14 श्रम कानूनों के दायरे से बाहर कर दिया गया है। ठेका मजदूर अधिनियम 1970 में बदलाव से हजारों ठेका मजदूर श्रम कानूनों के दायरे से बाहर हो जाएंगे।</p>
<p>औद्योगिक विवाद अधिनियम 1947 में परिवर्तन से जहां एक ओर अपनी मांगों को लेकर की जाने वाली मजदूरों की हड़ताल पर अंकुश लगेगा, वहीं दूसरी ओर मजदूरों की छंटनी की पक्रिया आसान हो जाएगी और उन्हें छंटनी भत्ता से भी वंचित होना पड़ेगा। तालाबंदी, छंटनी और ले ऑफ की प्रक्रिया भी मालिकों के पक्ष में हो जाएगी। इन मजदूर विरोधी कदमों को रोकने के लिए ट्रेड यूनियन संयुक्त मंच ने हिमाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री को पत्र लिखा है और श्रम कानूनों में बदलाव को रोकने की मांग की है।</p>
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