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हिमाचल: शिमला में जलवायु परिवर्तन पर मंथन के लिए जुटे वैज्ञानिक और अधिकारी

दुनिया भर में जलवायु परिवर्तन बड़ी तेजी से हो रहा है. ग्लेशियर पिघल रहे हैं, पहाड़ तप रहे हैं, तूफ़ानों की संख्या बढ़ रही है, भूकंपों की आवृत्ति बढ़ गई है, नदियों में बाढ़ का विकराल स्वरूप पहले से कहीं अधिक देखने को मिल रहा है….

पी.चंद |

दुनिया भर में जलवायु परिवर्तन बड़ी तेजी से हो रहा है. ग्लेशियर पिघल रहे हैं, पहाड़ तप रहे हैं, तूफ़ानों की संख्या बढ़ रही है, भूकंपों की आवृत्ति बढ़ गई है, नदियों में बाढ़ का विकराल स्वरूप पहले से कहीं अधिक देखने को मिल रहा है. जिसका सीधा असर जीवन पर पड़ रहा है. पहाड़ी प्रदेश हिमाचल नदियों पहाड़ों ग्लेशियरों सहित प्राकृतिक संसाधनों का राज्य है. लेकिन विकास के नाम पर पहाड़ों का सीना छलनी किया जा रहा है. इसी को ध्यान में रखते हुए बुद्धिजीवी काम तो कर रहे हैं बाबजूद इसके सार्थक परिणाम सामने नहीं आ रहे. जलवायु परिवर्तन के चलते शिमला में संवेदीकरण को लेकर नीति निर्धारण पर एक दिवशीय कार्यशाला रखी गई. जिसमें हिमाचल के वैज्ञानिक और अधिकारी एक साथ बैठक मंथन कर रहे हैं.

वैज्ञानिकों का कहना है कि ग्लेशियर लगातार पिघल रहे हैं. जलवायु परिवर्तन तेजी से देखने को मिल रहा है. अगर हम जलवायु परिवर्तन के बुरे परिणामों से बचना चाहते हैं तो हमें अपने क्रिया-कलापों पर ध्यान देते हुए तापमान वृद्धि के कारकों को नियंत्रित करने के बारे में ठोस क़दम उठाने चाहिए. ऐसे उपाय अपनाने चाहिए जिससे ताप वृद्धि धीमी हो. हिमाचल प्रदेश ने आज से सिंगल इस्तेमाल किया जाने वाला प्लास्टिक भी बंद कर दिया है जो इस दिशा में महत्वपूर्ण कदम है. वैज्ञानिक कुलकर्णी कहते हैं की जलवायु परिवर्तन के लिए हिमाचल या भारत जिम्मेदार नहीं है बल्कि दुनिया के वह देश हैं जिन्होंने औधोगिकरण कर प्रदूषण फैलाया.

हिमाचल प्रदेश विज्ञान प्रोधोगिकी एवम पर्यावरण परिषद (HIMCOSTE) के निदेशक ललित जैन ने बताया की जलवायु परिवर्तन पर प्रदेश के वैज्ञानिक और अधिकारी मंथन कर रहे हैं. ग्लेशियर को किस तरह से बचाया जाए, प्राकृतिक संसाधनों का दोहन वैज्ञानिक तरीके से किया जा सके. इस पर बल दिया जा रहा है. उन्होंने बताया की जिस रफ़्तार से ग्लोबल वार्मिंग हो रही है साल 2050 तक 2.0डिग्री सेल्सियस तक तापमान बढ़ जायेंगे. जिसके परिणामस्वरूप दुनिया को भयानक हीट-वेव का सामना करना पड़ सकता है, समुद्र के स्तर में बढ़ोत्तरी होने से लाखों लोग बेघर हो जाएंगे, कई पादप-जंतुओं की प्रजाति विलुप्त तक हो सकती है.

बता दें कि हिमाचल में आज से एकल उपयोग प्लास्टिक स्टिक में ईयरबड, गुब्बारे में लगी प्लास्टिक स्टिक, आइसक्रीम स्टिक, कैंडी स्टिक, प्लास्टिक के झंडे, सजावट में इस्तेमाल होने वाले पॉलीस्ट्रीन (थर्माकोल), कटलरी प्लेट, कप, चाकू, ट्रे, गिलास, फोर्क, स्ट्रॉ इत्यादि शामिल हैं। एकल उपयोग वाली प्लास्टिक वस्तुओं का निर्माण, भंडारण, वितरण, बिक्री और उपयोग पर भी प्रतिबंधित लग गया है।