हिमाचल प्रदेश में चैरी की फ़सल पर फाइटोप्लाजमा नामक बीमारी कहर ढाहने लगी है. शिमला जिला के बागी क्षेत्र में इस बीमारी का सबसे ज्यादा प्रकोप है. जहां 140 से 150 बागवानों के चेरी के पेड़ फाइटोप्लाजमा की चपेट में हैं. शिमला जिला के बागी, कोटगढ़, नारकंडा, थानाधार, कंडियाली, और कुमारसैन में चेरी की फसल होती है.
चेरी की फसल प्रदेश की आर्थिकी में लगभग 200 करोड़ का योगदान देती है. जिस पर संकट के बादल छा गए हैं. जिसको लेकर बागवानी विभाग अलर्ट पर है. बागीचों में फैटोप्लाजमा नामक बीमारी से पूरा पौधा अपने आप ही सूखने लग जाता है. बागवानों के मुताबिक पत्ते सूखकर अपने आप झड़ रहे हैं. हालांकि इस बीमारी के नाम के बारे में सही जानकारी बागवानी विभाग के पास भी नही है.
फाइटोप्लाजमा बीमारी की जांच के लिए बागवानी विभाग ने विशेषज्ञों की टीम भी फील्ड में भेज गई. बीमारी से ग्रसित पेड़ों से सैंपल इकट्ठा किए जा रहे है. निदेशक बागवानी सुदेश मोकटा ने बताया कि बीमारी के रोकथाम के लिए स्प्रे शेड्यूल पर भी काम किया जा रहा है. आज को क्योंकि चेरी के पेड़ों के पत्ते के झड़ रहे हैं पत्तों के पूरी तरह झड़ने के बाद मार्च-अप्रैल में ही फाइटोप्लाजमा पर सही तरीके से अध्ययन हो पायेगा. बागवानी विभाग ने विशेष बैठक बुलाकर स्थिति से निपटने की रणनीति भी तैयार कर ली है. प्रदेश में चेरी के बगीचों में इस तरह की बीमारी पहली बार देखी गई है. इससे बागवानों में हड़कंप मच गया है.
यहां बागवानों को इसलिए भी चेरी फ़सल की बर्बादी का डर सता रहा है, क्योंकि कुछ वर्ष पहले ही सिरमौर जिला के राजगढ़ क्षेत्र में आडू की फसल में भी इसी तरह की बीमारी पाई गई थी. परिणामस्वरूप क्षेत्र में आडू की फसल का अस्तित्व ही समाप्त गया था. यही वजह है कि चेरी के पेड़ों में लगी फाइटोप्लाजमा नामक बीमारी बागवानों व बागवानी विभाग के लिए सिरदर्द बन गई है. शिमला जिला के 400 हेक्टेयर भूमि पर चेरी की फ़सल होती है. जिसका उत्पादन 800 से 850 मेट्रिक टन फ़सल का है.