➤ एफसीए एक्ट में छूट को लेकर सुप्रीम कोर्ट जाएगी हिमाचल सरकार
➤ आपदा में भूमिहीन हुए लोगों को जमीन देने की मांग, 2023 से अटकी है केंद्र की मंजूरी
➤ राजस्व मंत्री बोले– एक हजार करोड़ का नुकसान, राहत पैकेज अब तक नहीं मिला
हिमाचल प्रदेश में लगातार हो रही प्राकृतिक आपदाओं से बेघर और भूमिहीन हुए लोगों को राहत दिलाने के लिए राज्य सरकार अब सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाने जा रही है। इसके लिए हिमाचल सरकार ने वन संरक्षण अधिनियम (Forest Conservation Act) 1980 में संशोधन की मांग की है ताकि आपदा में जमीन गंवा चुके परिवारों को वैकल्पिक भूमि मुहैया कराई जा सके।
राजस्व एवं बागवानी मंत्री जगत सिंह नेगी ने बताया कि 2023 की आपदा में भी राज्य को भीषण नुकसान हुआ था और अब 2025 में भी मानसून ने कहर बरपाया है। अभी तक 109 लोगों की मौत हो चुकी है, हजारों मकान क्षतिग्रस्त या बह चुके हैं और करोड़ों की संपत्ति तबाह हो गई है। उन्होंने कहा कि अब तक राज्य को केंद्र से कोई विशेष आपदा राहत पैकेज नहीं मिला है, जबकि गुजरात के लिए दो-दो लाख रुपये मुआवजा दिया गया है।
हिमाचल सरकार ने 2023 में ही केंद्र को प्रस्ताव भेजा था कि एफसीए एक्ट में संशोधन कर आपदा पीड़ितों को वन भूमि पर बसाने की छूट दी जाए, लेकिन कोई कार्रवाई नहीं हुई। अब सरकार सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर यह मांग उठाएगी कि आपदा में भूमिहीन हुए परिवारों को वन भूमि पर जमीन दी जा सके।
जगत नेगी ने केंद्र सरकार से आपदा राहत मैनुअल में संशोधन की भी मांग की। उन्होंने कहा कि मकान गिरने पर केंद्र सरकार केवल डेढ़ लाख रुपये देती है, जो मौजूदा समय में अपर्याप्त है। इसके विपरीत, हिमाचल सरकार ने अपने स्तर पर यह राशि बढ़ाकर सात लाख कर दी है।
उन्होंने केंद्र सरकार से अपील की कि वह हिमाचल जैसी भौगोलिक परिस्थिति वाले राज्यों के लिए राहत मानकों में लचीलापन लाए और विशेष राहत पैकेज जल्द जारी करे।



