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क्यों आमने-सामने हैं हिमाचल के दो विधानसभा क्षेत्रों के लोग?

<p>पानी को लेकर जोगिंदर नगर और बैजनाथ के कुछ गांवों के लोग आमने-सामने हैं। तनाव बना हुआ है, प्रशासन और विधायकों की मौजूदगी में चर्चा से लेकर बहस तक हो चुकी है। मसला है- पानी की कमी से जूझ रहे जोगिंदर नगर के लड-भड़ोल इलाके के कुछ गांवों के लिए बैजनाथ से होकर बहती खड्ड से पानी उठाना। जहां से पानी उठाया जा रहा है, उन लोगों का कहना है कि इससे तो हमारी कूहल (सिंचाई की छोटी नहर) ही सूख जाएगी।</p>

<p>जोगिंदर नगर के लड इलाके की पानी की समस्या बहुत पुरानी है। 1985 के विधानसभा चुनाव में निर्दलीय प्रत्याशी ठाकुर रत्न लाल ने जोगिंदर नगर के दिग्गज गुलाब सिंह ठाकुर को हराया था। ठाकुर रत्न लाल ने पहली बार बिनवा खड्ड का पानी उठाकर लड इलाके के लिए पीने का पानी का इंतजाम करवाया। मगर बैजनाथ में जहां से यह पानी उठाया गया था, वहां के लोग अक्सर पाइपों को गायब कर दिया करते थे। ठाकुर रतन लाल ने विधानसभा में भी आवाज उठाई कि &#39;यह कैसी मानसिकता है कि जब सिंचाई की जरूरत नहीं, तब भी पानी नहीं दिया जा रहा। यह कैसी सोच है कि कुछ लोगों को यह मंजूर है कि बिनवा का पानी सीमा पार पाकिस्तान चला जाए मगर यह मंजूर नहीं कि पड़ोस के लोगों की प्यास बुझ जाए।&#39;</p>

<p>बैजनाथ के विधायक पंडित संतराम के दखल के बाद कुछ दिनों तक समस्या सुलझी लेकिन फिर वही हालात। जब लोगों का मन करता, वे अपने खेतों को सींचने के लिए पानी की पाइप को बंद कर देते और लड-भड़ोल क्षेत्र के लोग त्राहि-त्राहि करने लगते। कई-कई दिन पानी नहीं आता। पानी रोकने वालों का तर्क होता- हम खेतों सिंचाई कैसे करेंगे? क्या भूखों मर जाएं बिना अनाज उगाए? मानवीय दृष्टि से उनकी बात भी जायज है। खैर, यह व्यवस्था कई सालों तक बनी रही। यहां तक कि आज भी यह परियोजना चल रही है और जब बैजनाथ के लोग पानी बंद कर देते हैं, पंडोल-मतेहड़ जैसे गांवों के लोग पीने के पानी तक के लिए परेशान हो जाते हैं।</p>

<p>अस्सी के दशक के बाद आज तक कितने ही साल बीत गए लेकिन किसी ने लड इलाके की पानी की समस्या को सुलझाने की कोशिश नहीं की। जोगिंदर नगर के ठाकुर गुलाब सिंह कई बार मंत्री रहे, धूमल सरकार में दूसरे नंबर पर भी रहे मगर लड इलाके की प्यास उन्हें नहीं महसूस हुई। 2017 के चुनाव में इन्हीं गुलाब सिंह ठाकुर को एक और निर्दलीय ने हराया- प्रकाश प्रेम कुमार उर्फ प्रकाश राणा ने। उन्होंने सिंचाई मंत्री महेंद्र सिंह से अच्छे रिश्तों की मदद से उपेक्षित लड क्षेत्र के लिए पानी की परियोजनाएं मंजूर करवाईं। एक के लिए चौंतड़ा के पास की सुक्कड खड्ड से पानी उठाया जा रहा है और दूसरी के लिए बैजनाथ के भजराला से।</p>

<p>पहली योजना मेरे घर के पास से होकर गई। उसके लिए कई इंच मोटा पाइप है और बहुत सारी पंचायतों को पानी देने की योजना है। मगर पाइप बिछा देने के बाद विभाग को अहसास हुआ कि जिस खड्ड से पानी उठाना है, उसमें तो इतना पानी ही नहीं है कि ये पाइप भर सके। पाइप पूरा नहीं भरेगा तो पहाड़ी के दूसरी ओर ले जाने के लिए पानी लिफ्ट कैसे होगा? तो समाधान निकाला गया कि यहां ट्यूबवेल लगाए जाएंगे, उसका पानी खड्ड के पानी के साथ मिलाकर फिर लिफ्ट किया जाएगा। स्थानीय लोगों को बताया गया कि ये ट्यूबवेल आपके लिए लग रहे हैं। जब उन्हें असल योजना का पता चला तो वो कहने लगे कि हम खुद पानी की समस्या से जूझ रहे हैं और आप हमारा समाधान करने के बजाय यहां से कहीं और पानी ले जा रहे हैं? हंगामा हुआ। आईपीएच के अधिकारियों ने गोलमोल बातें कीं, स्पष्ट जवाब नहीं दिया।</p>

<p>लड इलाके के लिए बन रही दूसरी पेयजल परियोजना के तहत बैजनाथ की भजराला खड्ड से पानी उठाया जाना है। वहां के लोग फिर अड़ गए हैं कि हमारी कूहल सूख जाएगी। बैजनाथ और जोगिंदर नगर दोनों के विधायक जनता को समझा रहे हैं। लेकिन जनता मान नहीं रही। आज फिर जोगिंदर नगर के विधायक ने कहा, &quot;आईपीएच का कहना है कि खड्ड में 8-10 इंच पानी है और पाइप बिछ गया है 6 इंच का। हमने समाधान निकाला है कि हम 3 इंच ही पानी उठाएंगे और बाकी पानी खड्ड से उठाकर कूहल में डाला जाएगा।&quot;</p>

<p>लेकिन सवाल ये है कि छह इंच का पाइप पूरा भरेगा नहीं तो वो प्रेशर कैसे बनेगा और पानी उठेगा कैसे? और दूसरी बात यह है कि ऐसी नौबत आई ही क्यों? ये चर्चा अब क्यों हो रही है कि कितना पानी उठाना है, कितने इंच का पाइप होना चाहिए? कोई परियोजना बनाने से पहले क्यों नहीं आईपीएस विभाग ने प्रॉपर स्टडी की, क्यों नहीं देखा कि कितना पानी है? ऐसा ही सुक्कड़ खड्ड के मामले में किया गया। दोनों जगह जनता कि विश्वास में लेने के बजाय गुमराह किया गया।</p>

<p>पानी का पानी सबको मिलना चाहिए और सिंचाई के लिए भी पानी की इंतजाम होना चाहिए। मगर हिमाचल प्रदेश में जिस तरह से आंख मूंदकर सिर्फ मंत्री या उनके करीबियों के आदेश के आधार पर योजनाओं की घोषणा करके विभाग जॉन्बी की तरह काम में जुट जा रहा है, वह ठीक नहीं है। विधायक लड इलाके से हैं और उनकी भावना को समझा जा सकता है। वो चाहते होंगे कि अपने रहते कम से कम पानी की समस्या को तो सुलझा ही दें। लेकिन कोई भी विकास सस्टेनेबल होना चाहिए। दीर्घकालिक। ऐसा नहीं कि कोई मंत्री या विधायक अपने टर्म में अपने लोगों को खुश करने के लिए कुछ भी बना दे और बाद के समय में वह सफेद हाथी बन जाए। जैसा कि जोगिंदर नगर का रेवेन्यू ट्रेनिंग इंस्टिट्यूट। इलाके की प्राइम जगह पर ऐसा संस्थान बना दिया गया जिससे स्थानीय लोगों को कोई लाभ नहीं। और भविष्य में कोई और संस्थान आना हो तो उसके लिए भी ढंग की जगह नहीं बची।</p>

<p>सरकार को चाहिए कि सोच-समझकर योजनाएं बनाए, दीर्घकालिक योजनाएं बनाए। यह बात ठीक है कि सबको संतुष्ट करना संभव नहीं है। लेकिन समाधान ऐसा होना चाहिए जो व्यावहारिक हो।</p>

<p><span style=”color:#c0392b”><strong>&nbsp;पत्रकार आदर्श राठौर की फेसबुक टाइमलाइन से साभार</strong></span></p>

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