कांगड़ा जिले की अत्यंत मेधावी दिव्यांग छात्रा निकिता चौधरी हिमाचल प्रदेश में एमबीबीएस में प्रवेश लेने वाली पहली व्हीलचेयर यूज़र बन गई है. हाईकोर्ट के आदेश पर से आखिरकार बुधवार को डॉ. राजेंद्र प्रसाद मेडिकल कॉलेज, टांडा में दाखिला दे दिया गया. इसी मेडिकल कॉलेज ने पहले अपने नियमों का हवाला देते हुए उसे प्रवेश देने से इनकार कर दिया था. न्याय के लिए उसकी फरियाद को पिछली सरकार में अनसुना कर दिया गया था.
उमंग फाउंडेशन ने उसके साथ हुए अन्याय के खिलाफ आवाज उठाई और संघर्ष में उसका पूरा दिया. फाउंडेशन के अध्यक्ष प्रो. अजय श्रीवास्तव ने बताया कि 12 नवंबर को हाईकोर्ट की न्यायमूर्ति सबीना और न्यायमूर्ति सुशील कुकरेजा की खंडपीठ ने सरकार को आदेश दिए थे कि निकिता चौधरी को टांडा मेडिकल कॉलेज में तुरंत दाखिला दिया जाए.
इसके बाद चिकित्सा शिक्षा निदेशक प्रो. रजनीश पठानिया की अध्यक्षता में प्रदेश के मेडिकल कॉलेजों के प्रधानाचार्य की एक उच्चस्तरीय बैठक में हाईकोर्ट के आदेश के अनुपालन का निर्णय किया गया.
गौरतलब है कि टांडा मेडिकल कॉलेज में दिव्यांग निकिता चौधरी को प्रवेश देने से इनकार करने के बाद एमबीबीएस की उसे आवंटित सीट हिमाचल के जनरल कोटे की शाम्भवी को दे दी थी. निकिता को सीट देने के लिए सीट आवंटन में काफी फेरबदल करना पड़ा.
अब शाम्भवी को टांडा से लाल बहादुर शास्त्री मेडिकल कॉलेज, मंडी में उसके मूल आवंटित मेडिकल कॉलेज में भेजा गया है. इसी तरह मंडी से चक्षिता सिंह को हमीरपुर के डॉक्टर राधाकृष्णन मेडिकल कॉलेज में और वहां से अंकिता को चंबा के जवाहरलाल नेहरू मेडिकल कॉलेज में भेजा गया है.
प्रो. अजय श्रीवास्तव ने कहा कि प्रदेश में दिव्यांगों एवं अन्य कमजोर वर्गों को संवेदनहीन सरकारी तंत्र से न्याय नहीं मिल पाता है. उनके लिए एकमात्र सहारा हाईकोर्ट ही बचा है. अत्यंत सामान्य परिवार की निकिता चौधरी ने भी मुख्यमंत्री से लेकर सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता विभाग के सचिव, निदेशक और स्वास्थ्य विभाग तथा चिकित्सा शिक्षा के उच्च अधिकारियों तक को पत्र भेजे. लेकिन दुर्भाग्य की बात यह कि कहीं कोई सुनवाई नहीं हुई.