हमारी सरकारें हिमाचल के इतिहास और धरोहरों को संरक्षित करने की बड़ी-बड़ी बातें तो जरूर करती हैं पर जमीन पर काम कम ही दिखता है। सरकार की अनदेखी का ही नतीजा है कि 450 साल पुराना गुलेर और 250 साल पुरना नंनदपुर किला आज जर्जर हालत में है।
चूने और सुरखी के इस्तेमाल से बनी ये इमारतें आज अपनी छटा खोती जा रही हैं। इन किलों के मालिक राघव गुलेरिया की माने तो इस सामग्री से बनी इमारतें समय की चुनौती के सामने फैल नहीं होती हैं। अगर सही ढंग से रख-रखाव किया जाए तो ये भवन 1,000 साल से भी ज्यादा तक खड़ी रहती हैं। वहीं सीमेंट और रेते की इमारतें 100 साल के अंतराल के बाद ही जबाव दे देती हैं। लेकिन चूने और सुरखी से काम करना अब प्रदेश क्या देश में भी कुछ ही लोगों को आता है। इसी कारण राघव गुलेरिया को राजस्थान से आई एक टीम की मदद लेकर नंनदपुर के किले की मरम्मत करवानी पड़ रही है। जब गुलेरिया से हरीपुर गुलेर के किले के बारे में पुछा तो उन्होंने बताया कि इसकी मरम्मत पर 1.5 करोड़ से ज्यादा का खर्च आएगा जोकि बिना सरकारी मदद के मुमकिन नहीं है।
राघव ने सरकार से कई दफा इन पौराणिक किलों के संरक्षण के लिए गुहार लगाई है। पर सरकारी अफसरों के कान पर जूं तक नहीं रेंगी। अगर मनरेगा के अंदर काम करने वाले कुछ मिस्त्रियों और मजदूरों को ही प्रशिक्षण दे दिया जाए तो सदियों पुरानी इन धरोहरों को बचाया जा सकता है।
पोंग झील के किनारे बसे हरीपुर गुलेल और नंनदपुर में मध्य कालीन बहुत से भवन हैं पर पर्यटक यहां का कम ही रुख करते हैं। राघव कहते हैं कि अगर इन इमारतों के संरक्षण पर अगर प्रशासन ध्यान दें तो यहां पर्यटन और रोजगार नए आयाम छुए गा।
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