हिमाचल प्रदेश की ऐतिहासिक नगरी तत्तापानी के सतलुज की शीतल धारा के तट पर बनें पावन तप्त जल कुंडों में श्रद्धालुओं ने स्नान कर मंदिरों में पूजन अर्चन कर दान किया. बहुत से लोगों ने तुलादान भी किया.
सुकेत संस्कृति साहित्य एवं जन कल्याण मंच पांगणा के अध्यक्ष डॉक्टर हिमेंद्र बाली हिम ने मौनी अमावस्या के अवसर पर तत्तापानी के तप्त कुंड में स्नान, दान,अर्घ्य, तुलादान करने के बाद जानकारी दी. कि पावन तीर्थ तत्तापानी सुकेत में सतलुज नदी के दायें तट पर अवस्थित महर्षि जमदग्नि की पावन भूमि है.
सागर मंथन से निकली पांच कामधेनु गाय नंदा, सुनंदा, सुरभि, नंदिनी व सुशीला निकली. जिन्हें अत्रि व जमदग्नि आदि ऋषियों ने अपने आश्रम में रखा. महर्षि जमदग्नि ने तत्तापानी में तप कर सनातन परम्परा को हिमालय के वृहद क्षेत्र में प्रसार किया.
अक्षय सप्तर्षियों में एक जमदग्नि की अक्षुण धर्मनिष्ठा से हैहय वंशी शासक सहत्रार्जुन ईर्ष्या से विदग्ध हो उठा. जमदग्नि ऋषि की पत्नी रेणुका की बहन बेणुका (बेणु) सहस्रार्जुन की पत्नि थी. एक दिन सहस्रार्जुन ने रेणुका व ऋषि को अपमानित करने के लिये रेणुका (रेणु) से कहा कि वे हमें भी आतिथ्य के लिये बुलाए.
माता रेणुका विषाद से भर उठी. चूंकि उनका परिवार तो तत्तापानी में एक कुटिया में तपश्चर्या कर थर्मपरायण जीवन व्यतीत कर रहे थे. इतने बड़े राजा को अतिथि रूप में बुलाना स्वयम् को लज्जित करने जैसा था. जब जमदग्नि ने रेणुका से पत्नी के संताप का कारण पूछा तो उत्तर में कहा कि वे अपने बहनोई को प्रजा सहित बुलाए. वे राजा के प्रस्ताव के स्वीकार करते हैं. निश्चित दिन अभिमानी सहस्रार्जुन अपनी प्रजा व शनि-राहू सहित अन्य ग्रहों को साथ लेकर ऋषि को लज्जित करने के लिये तत्तापानी पहुंचा.
महर्षि जमदग्नि ने कामधेनु की सहायता से देवताओं को भी दुर्लभ पकवान अतिथियों को परोसे. जमदग्नि ऋषि के द्वारा सहस्रार्जुन व अन्य अतिथियों का अद्भुत आतिथ्य पाकर हतप्रभ था. गुप्त सूचना से सहस्रार्जुन ने पाया की यह अलौकिक आतिथ्य स्वर्ग की सर्वकामना प्रदायिनी कामधेनु का प्रताप है. राजा गाय को प्राप्त करने के लिये बल प्रयोग पर उतर आया.
इस संघर्ष में उसने ऋषि का वध कर डाला. लोक मान्यता है कि जब सहस्रार्जुन ने ऋषि का वध किया तो उस समय उनके पु्त्र परशुराम कुलातपीठ क्षेत्र में शिव-पार्वती की रमणस्थली मनिकर्ण के उष्ण कुण्ड में स्नान कर रहे थे.
वे तत्क्षण अढाई कदम में तत्तापानी पहुंचे।यही अपनी गीली धोती को को निचोड़ा. कहते हैं की धोती के निचोड़ने से निकले गर्म जल से यहां उष्ण जल स्रोत फूट पड़े. रेणुका नंदन ने सहस्रार्जन का वधकर धरती पर से 21 बार क्षत्रियों का नाश किया. कामधेनु गाय की रक्षा के लिये अपने प्राणों को न्यौच्छावर करने वाले ऋषिवर जमदग्नि की स्मृति में ही सुकेत व सुन्नी-भज्जी क्षेत्र में गोपर्व “माल”/”माड़” का आयोजन होता है.
सुकेत में कामधेनु गाय को “कैलड़ी” नाम से पूजा जाता है. रामगढ़ के सोमाकोठी में अवस्थित सोमेश्वर मंदिर में कैलड़ी माता का मंदिर है. जमदग्नि ऋषि की तपोभूमि तत्तापानी के आसपास आज भी कई स्थान ऋषि व उनके पुत्र परशुराम के लिये समर्पित है. तत्तापानी में सतलुज के बायें तट पर जिला शिमला के सुन्नी-भज्जी क्षेत्र में नदी तट पर जमदग्नि ऋषि की गुफा है. सुन्नी के समीप तत्तापानी के पश्चिम में जमोग गांव का शिव मंदिर भी ऋषि से सम्बंधित है.
यहां मान्यता है कि यहां ऋषि ने शिव साधना की थी. शिमला के मशोबरा के अधिष्ठाता देव सिपुर को जमदग्नि ऋषि माना जाता है. यह क्षेत्र भी सुन्नी व तत्तापानी के समीप सतलुज घाटी क्षेत्र के अंतर्गत है.
सुन्नी के समीप पूर्व की ओर दो किमी की दूरी पर “मकड़च्छा” गांव ब्राह्मण बस्ती है. सम्भव है कि भार्गव परशुराम ने पश्चिमी हिमालय क्षेत्र में जो यजुर्वेदीय व अथर्ववेदीय ब्राह्मण बस्तियां बसायीं “मकड़च्छा” भी उनमें एक हो। यहां मंदिर में परशुराम के विग्रह की प्रतिष्ठा इस बात का प्रमाण है.
साहित्यकार डॉक्टर हिमेंद्र बाली “हिम” का कहना है कि तत्तापानी में जमदग्नि ऋषि की तपश्चर्या से पावन हुई भूमि गोवंश रक्षा के समृद्ध आख्यान के कारण गौरवमयी हुई भूमि भार्गव परशुराम द्वारा अधर्म के प्रतीक सहस्रार्जुन के नाश के कारण सत्य की शाश्वत चैतन्य ऊर्जा से आप्लावित है. अत: तत्तापानी तीर्थ गंगा जैसा पुण्यदायी व मोक्षदायी माना जाता है.
मकर संक्रांति और मौनी अमावस का ब्रह्ममुहूर्त का उष्ण जल स्रोत में स्नान पाप-कष्टों को हरण करने वाला है. तत्तापानी में किया गया दान व यज्ञ कोटि गुणा फलदायी माना जाता है. तत्तापानी में मकर संक्रांति से पूरे माघ मास में उष्ण जल स्नान व दान के लिये समूचे भारत वर्ष से लोग आते हैं. तत्तापानी का क्षेत्र महाभारतकालीन घटनाओं का भी साक्षी रहा है. यहां आस-पास स्थापित मंदिर महाभारत युगीय चरित्रों की पूजा-मान्यता के प्रतीक हैं.
पुरातत्व चेतना संघ मंडी द्वारा स्वर्गीय चंद्रमणी कश्यप राज्य पुरातत्व चेतना पुरस्कार से सम्मानित डॉक्टर जगदीश शर्मा का कहना है कि तत्तापानी की वैदिक व पौराणिक गरिमा कोलडैम के बनने से बनी झील के कारण धूमिल हुई है. कभी सतलुज के तट पर ही शीतल जलधारा के एकदम साथ ही उष्ण जल के स्रोतों में स्नान कर माघ संक्रांति का मास पर्यंत मेला लगता था. परन्तु अब जल स्तर बढ़ने से उष्ण जल को तत्तापानी -करसोग सड़क पर निकाला गया है. महर्षि जमदग्नि की तपोभूमि व प्राचीन गोपाल कृष्ण मंदिर जल में समाधि ले चुके है.
भौतिक विकास से उपजे इस विकास के बावजूद ततापानी का धार्मिक महत्व बचा है. महर्षि जमदग्नि के तपोबल से बिखरी आध्यात्मिक ऊर्जा की अनुभूति आज भी इस पावन क्षेत्र में विद्यमान है. ततापानी के दक्षिण में नदी के बायीं ओर आज भी हैहय वंशी सहस्रार्जुन की दैवीय सत्ता के दर्शन होते हैं. सहस्रार्जन सुन्नी-भज्जी क्षेत्र में “दानो देव” के रूप में पूजित है. दानों देव भज्जी रियासत के रियासती देव है और नरोल (पर्दे) में इनकी पूजा भज्जी के राज परिवार के मंदिर सुन्नी में होती है.
तत्तापानी के पुनरुत्थान में महत्वपूर्ण योगदान करने वाले समाज सेवी प्रेम रैना प्रेम का कहना है कि सतलुज नदी के किनारे स्थित तत्तापानी ऋग्वैदिक युग के अंतिम चरण से सनातन संस्कृति के प्रसार का स्थल रहा है.
इसी कालखण्ड में सप्तर्षियों में एक जमदग्नि व उनके पुत्र परशुराम की शिवालिकीय क्षेत्र से आकर मध्य हिमालय क्षेत्र में सनातन संस्कृति के प्रसार में महान भूमिका रही है. उनके महत्व कार्य आज भी यहां, लोहड़ी, मकर संक्रांति, मौनी अमावस, बैशाखी, संक्रांति जैसे धार्मिक समारोहों में प्रतिबिम्बित होते हैं.