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हिमाचल में लुकड़ियां गाकर मानते है लोहड़ी, ये पर्व खेती और किसानी को भी है समर्पित

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एक बार ऐसा समय आता है. जब वातावरण जीवंत उत्यौहारों से भर जाता है त्यौहार प्रकृति में होने वाले परिवर्तन के साथ-साथ मनाये जाते हैं.

नए साल के बाद सबसे पहला त्योहार लोहड़ी का ही आता है. इस साल 13 जनवरी को लोहड़ी का त्योहार मनाया जाएगा. पंजाब, हरियाणा और हिमाचल प्रदेश में लोहड़ी का पर्व बेहद फेमस है.
लोहड़ी के इस त्योहार को अब देश के दूसरे हिस्सों में भी मनाया जाने लगा है. लोहड़ी का पर्व सुख-समृद्धि व खुशियों का प्रतीक है. लोग इस त्योहार को मिलजुल कर मनाते हैं और खुशियों के गीत गाते हैं.

ये पर्व खेती और किसानी को भी समर्पित है. इस दिन नई फसल की पूजा की जाती है. खास बात ये है कि लोहड़ी के पर्व पर आग जलाकर उसमें गुड़, मूंगफली और रेवड़ी डालते हैं. ऐसा करना बेहद शुभ माना जाता है.

लोहड़ी के पर्व को पूरे देश में बहुत धूमधाम से मनाया जाता है। यूपी में इस पर्व को खिचड़ी कहते हैं तो दक्षिण भारत में पोंगल। हिमाचल में यह पर्व कम से कम तीन से चार तक मनाया जाता है।

उत्तर भारत में मकर संक्रांति के पर्व को बहुत धूमधाम से मनाया जाता है। देश के विभिन्न राज्यों में इसे अलग-अलग नाम से जाना जाता है। उत्तर प्रदेश में खीचड़ी, दक्षिण भारत में पोंगल, गुजरात में उत्तरायण के नाम से जाना जाता है।

हिमाचल प्रदेश के कई हिस्सों में लोहड़ी का त्योहार नए साल के साथ ही हो जाता है। रोज शाम को लड़के और लड़कियां अलग-अलग तरह की लुकड़ियां गाने जाते हैं और लोग इसके बदले उन्हें मूंगफली, रेवड़ियां, पैसे और अपनी पसंद की चीजें देते हैं। हिमाचल में यह सिलसिला 12 जनवरी तक चलता है। 13 जनवरी को लोहड़ी पर ‘हिरण’ का दिन होता है। कुछ लड़कों की टोलियां में हिरण का वेष भी धरा जाता है।

इसके बाद वे मिलकर ‘हिरण’ गाते हैं। अगले दिन सुबह मकर सक्रांति पर लड़कियां राजड़े गाती हैं। इसके वाद खिचड़ी का पर्व मनाया जाता है। हर घर में देसी घी और दूध के साथ उड़द की दाल की खिचड़ी परोसी जाती है और अपने करीवियों को खिचड़ी और वड़ों लोहड़ी की भेंट दी जाती है।

हिमाचल के कुछ इलाकों की अपनी अनोखी लोहड़ी भी है, जिसे माघी कहते हैं। माघी का त्योहार भी 3 से 4 दिन चलता है। जिन इलाकों में खूब बर्फबारी होती है, वहां इस त्योहार का चलन है। लोग अपने घरों में सिड्डू बनाते और खाते हैं।

साथ ही ‘हारूल’ गाथाएं गाई जाती हैं। देर रात तक नाटी होती है। सिरमौर में गिरिपार में इस त्योहार को भातीयोज कहते हैं। यहां भी पारंपरिक तरीकों से लोग इस त्योहार को मनाते और आपस में खुशियां वांटते हैं। कुल्लू और और

शिमला के आसपास के कई इलाकों में मकर संक्रांति को ‘खिचड़ी का साजा’ नाम से भी जाना जाता है। इस दिन घर-घर में माश की खिचड़ी बनाई जाती है। परंपरा के अनसार कुल्लू में लोग अपने निकट संबंधियों को जौ प्रदान कर सुरक्षित सर्द ऋतु गुजर जाने पर खुशियां मनाते हैं।

चंबा की तो लोहड़ी और मकर सक्रांति दोनों ही अनोखी हैं। माना जाता है कि रियासत काल में मढ़ियों के कब्जे को लेकर अगर मारपीट में किसी भी जान भी चली जाती थी तो राजा की ओर से एक खून माफ होता था। आज के समय में यहां पर कोई खून-खरावा तो नहीं होता लेकिन इस परंपरा के तौर पर सांकेतिक तरीके से मढ़ियों के कब्जे का दृश्य रचा जाता है.