हिमाचल सरकार कर्ज लेने के मामले में हॉफ सेंक्चुरी लगाने की दहलीज पर पहुंच गई है। सरकार ने तीस दिन के भीतर ही 500 करोड़ रुपये का कर्ज लेने के लिए आवेदन किया है। जैसे ही कर्ज की रकम सरकार के खाते में पहुंचेगी, प्रदेश पर कुल कर्ज का बोझ 50 हजार करोड़ के करीब पहुंच जाएगा। कर्ज के मामले में चौंकाने वाला तथ्य यह है कि सरकार को कर्ज का ब्याज चुकाने के लिए हर साल पांच हजार करोड़ उधार लेना पड़ता है।
अक्टूबर में सरकार ने 500 करोड़ का कर्ज लिया था और अब फिर से इतना ही उधार लेने के लिए आवेदन किया है। कर्ज इसलिए लिया जा रहा है ताकि कर्मचारियों और पेंशनरों को तीन फीसद महंगाई भत्ते का भुगतान किया जा सके। एक फीसद वित्तीय लाभ देने के लिए सरकार को 50 करोड़ की दरकार रहती है। डीए का भुगतान करने के कारण सरकार पर 200 करोड़ रुपये का अतिरिक्त वित्तीय बोझ पड़ा है। इस प्रकार के बोझ की भरपाई करने के लिए सरकार तुरंत कर्ज लेने जा रही है। वर्तमान सरकार अभी तक तीन हजार करोड़ का कर्ज ले चुकी है। हालत यह है कि सरकार को कर्ज का ब्याज चुकाने के लिए भी कर्ज उठाना पड़ता है। अगले सात सालों के दौरान सरकार को कर्ज का मूल भी चुकाना शुरू करना पड़ेगा और आधा कर्ज चुकाने की ओर कदम उठाने पड़ेंगे।
अक्टूबर में भी लिया 500 करोड़
सरकार ने एक माह पूर्व 500 करोड़ रुपये का कर्ज लिया था। अभी तक तीस दिन पूरे नहीं हुए हैं और दोबारा से कर्ज लेना पड़ रहा है। 500 करोड़ की राशि कुछ दिन के भीतर सरकार के खाते में पहुंचेगी। राज्य में बीते 5 साल में प्रदेश में प्रति व्यक्ति कर्ज का बोझ भी 50 फीसदी बढ़ा है, जिससे प्रति व्यक्ति कर्ज का बोझ 65,444 रुपए तक पहुंच गया है।