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कसोल में काहिका उत्सव, 222 साल के बाद दोहराया जा रहा इतिहास

अंशुल |

कुल्लू की धार्मिक एवं पर्यटन नगरी मणिकर्ण घाटी के कसोल में काहिका उत्सव चल रहा है। इस काहिका उत्सव का 2 दो अगस्त तक चलेगा। कसोल में यह उत्सव 222 साल के बाद मनाया जा रहा है। यह काहिका उत्सव कसोल के देवता नारायण के सम्मान में मनाया जाता है।

इस उत्सव में ग्राहण के रावल ऋषि, दुर्वासा ऋषि, देवता चव्यन, माता काली कसोल, देवता अग्नपाल पाथला, नैना माता मणिकर्ण, देवता काली नाग मतेउडा, माता पंचासन मतेउड़ा, देवता जोड़ा नारायण कशाधा, देवता कपिल मुनि बरशैणी, जमलू देवता छलाल और पार्वती घाटी के सभी देवी-देवताओं के कारकून, गूर, पुजारी सहित देवसमाज से जुड़े लोग आदि शामिल होंगे। घाटी में 222 साल के बाद यह इतिहास दोहराया जाएगा, जब इस तरह के उत्सव का आयोजन किया जा रहा है।

देवता नारायण कसोल के कारदार योगराज और पुजारी मनोहर लाल ने जानकारी देते हुए बताया कि इस काहिका उत्सव के बारे में हमें देवता के गूर की गुरबाणी के माध्यम से जानकारी मिली है। इस काहिका के आयोजन को लेकर कसोल व संपूर्ण पार्वती घाटी के लोगों को खासा उत्साह है। उन्होंने बताया कि 10 जुलाई से कसोल के देवता नारायण 11 गांवों की परिक्रमा के लिए रवाना हुए थे और इन गांवों की परिक्रमा के दौरान देवता काहिका के लिए अपनी शक्तियां अर्जित की। उन्होंने बताया कि कसोल में काहिका उत्सव का आयोजन लगभग 222 वर्षों के बाद किया जा रहा है। उन्होंने बताया कि आज सभी देवता संपूर्ण कसोल घाटी की परिक्रमा करेंगे।

राज परिवार के सदस्य करते हैं काहिका उत्सव का आगाज

सदियों से चली आ रही इस पंरपरा का निर्वहन राज परिवार के सदस्य भी करते हैं। कुल्लू से भगवान रघुनाथ के छड़ीबदार महेश्वर सिंह ने काहिका उत्सव की परंपरा को निभाया और काहिका उत्सव का आगाज किया। उन्होंने काहिका के लिए विशेष वस्त्र भेंट कर काहिका का शुभारंभ किया।

फतेह चंद निभाएंगे नड़ की भूमिका

देवता नारायण कसोल के कारदार योगराज और पुजारी मनोहर लाल ने बताया कि इस काहिका उत्सव में नड़ की भूमिका मणिकर्ण घाटी के फतेह चंद निभाएंगे। काहिका में परंपरा का निर्वहन करते हुए देवता के कारदार द्वारा नड़ को तीर मारा जाएगा जिससे नड़ अचानक से मूर्छित होकर जमीन गिरता है। इसके बाद व्यक्ति को पंचरत्न दिया गया और कफन ओढ़ाकर बकायदा व्यक्ति का जनाजा भी निकाला जाएगा।

ऐसे में नड़ की पत्नी को सौंपी जाती है संपति

देवता के कारदार योगराज ने बताया कि पुराने समय में इस क्षेत्र में राक्षसों का आतंक हुआ करता था। राक्षसों का अंत करने के लिए सभी देवताओं ने काहिका पर्व मनाने की सलाह दी और उसके बाद से लेकर समय-समय पर काहिका पर्व का आयोजन किया जाता है। उन्होंने बताया कि अगर काहिका पर्व के दौरान देवता नड़ को जिंदा नहीं कर पाता है तो श्रद्धालुओं के सामने देवता का रथ जला देते हैं और देवता की सारी संपत्ति नड़ की पत्नी को सौंप दी जाती है।