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इस गुमनाम भारतीय इंजीनियर की देन है कालका-शिमला रेलवे लाइन

पी. चंद |

यूनेस्को की विश्व धरोहर की सूची में शामिल कालका-शिमला रेलवे लाइन के निर्माण की कहानी बेहद रोचक है। 116 वर्ष पुरानी इस रेलवे लाइन को ब्रिटिश इंजीनियरों के बजाय एक अनपढ़ पहाड़ी नौजवान ” बाबा भलकू ” के इंजीनियरिंग कौशल से तैयार किया गया।

116 साल पुराने विश्व धरोहर शिमला कालका ट्रेन में कवियों की कवितायें गूंजी दरअसल बाबा भलकू की याद में  हिमालय साहित्य, संस्कृति एवं पर्यावरण मंच  द्वारा  विश्व धरोहर  शिमला-कालका रेल में रविवार को अनूठी साहित्यिक गोष्ठी अनपढ़ इंजीनियर बाबा भलकू की स्मृति में आयोजित की गई । अपनी तरह की इस अनूठी  पहल  में  हिमाचल के 30  रचनाकार और संस्कृतकर्मीयों ने भाग लिया । इस गोष्ठी को बाबा भलकू की स्मृति और सम्मान को समर्पित किया गया । यात्रा  के दौरान  वरिष्ठ और युवा कलाकारो ने  अपनी-अपनी रचनाओं की प्रस्तुतियां दी । शिमला से बड़ोग तक की यात्रा में पड़ने वाले स्टेशनों में समरहिल, तारा देवी, कैथलिघाट, कंडाघाट और बड़ोग स्टेशन  कविता, गजल, कहानी और संस्मरण के सत्र रखे गए।

इंजीनियरिंग कौशल के धनी थे बाबा भलकू

बाबा भलकू  चायल के समीप झाझा गांव के  एक अनपढ़ किन्तु विलक्षण प्रतिभा संपन्न ग्रामीण थे। जब सारे अंग्रेज इंजीनियर कालका शिमला रेल लाइन का सर्वे करने में असफल हो ये तब बाबा भलकू  की  सलाह और सहयोग से अंग्रेज इंजीनियर शिमला कालका रेलवे लाइन के निर्माण में सफल हो पाए थे।  हिंदुस्तान तिब्बत रोड के निर्माण के वक्त भी बाबा भलकू के मार्ग निर्देशन में न केवल सर्वे हुआ बल्कि सतलुज नदी पर कई पुलों का निर्माण भी हुआ था। जिसके लिए उन्हें ब्रिटिश सरकार के लोक निर्माण विभाग द्वारा ओवरशीयर की उपाधि से नवाजा गया था। कहा जाता है की  भलकू अपनी एक छड़ी से नपाई करता और जगह जगह सिक्के रख देता और उसके पीछे चलते हुए अंग्रेज सर्वे का निशान लगाते चलते। जहाँ अंग्रेज इंजीनियर फेल हो गए वहां  अनपढ़ ग्रामीण एक छड़ी के सहारे  इस मुश्किल कार्य को अंजाम दिया। जिसको आज़ादी के बाद एक इंच आगे नही बढाया जा सका।