Follow Us:

कारगिल युद्ध में दुश्‍मन के दांत खट्टे् करने वाले हिमाचल के इन सूरमाओं को मिला था ‘परमवीर चक्र’

समाचार फर्स्ट |

विश्व के युद्ध इतिहास में जब-जब भी अदम्य साहस का जिक्र होगा, करगिल युद्ध के साथ-साथ हिमाचल के जांबाज वीरों की गाथा सबकी जुबां पर आएगी। दुनिया के सबसे ऊंचे युद्ध क्षेत्र में चोटी पर बैठे दुश्मन सैनिकों को भारतीय सेना ने बुरी तरह से खदेड़ा। करगिल युद्ध में हिमाचल के दो योद्धाओं ने वीरता की मिसाल पेश की और उन्हें परमवीर चक्र से अलंकृत किया गया। दुखद ये है कि एक परमवीर कैप्टन विक्रम बतरा युद्ध क्षेत्र में ही शहादत का जाम पी गए।

दूसरे परमवीर राइफलमैन संजय कुमार अभी भी भारतीय सेना में देश की सेवा कर रहे हैं। आपको बता दें कि करगिल युद्ध में हिमाचल के 52 वीर जवानों ने अपने प्राणों का आहूति दी थी। यहां कैप्टन विक्रम बतरा के अदम्य शौर्य का जिक्र करना जरूरी है, ताकि नई पीढ़ी के भीतर देश सेवा की लौ जगती रहे।

विक्रम बत्तरा के शौर्य से पाकिस्तान की सेना में था खौफ

                                           

विक्रम बतरा के शौर्य से पाकिस्तान की सेना में खौफ था। वे उसे शेरशाह के नाम से पुकारते थे। अहम चोटियों पर तिरंगा लहराने के बाद विक्रम बतरा ने आराम की परवाह भी नहीं की और जो नारा बुलंद किया, वो इतिहास बन गया है। विक्रम बतरा का ‘ये दिल मांगे मोर’, नारा सैनिकों में जोश भर देता था।

परमवीर राइफल मैंन संजय कुमार की ऐसी है शौर्यगाथा

                                      

बिलासपुर जिला के बकैण गांव के संजय कुमार ने भी करगिल युद्ध में अदम्य शौर्य दिखाया। करगिल की पाइंट 4875 चोटी पर पाकिस्तान ने भारतीय सेना के इस योद्धा का साहस देखा। संजय कुमार का सामना पाकिस्तानी सैनिकों की ऑटोमैटिक मशीनगन से हो गया था। संजय कुमार ने निहत्थे ही उनकी मशीनगन ध्वस्त कर सैनिकों को मार गिराया था।

संजय की बहादुरी से घबराए पाकिस्तानी सैनिक अपनी यूनिवर्सल मशीनगन छोड़ कर भाग गए। 13 जैक राइफल के संजय कुमार को इस शौर्य के लिए परमवीर चक्र दिया गया था। संजय कुमार 3 मार्च 1976 को बिलासपुर के बकैण गांव में जन्मे थे। वे आरंभ से ही भारतीय सेना का हिस्सा बनना चाहते थे। संजय कुमार अभी भी भारतीय सेना में सेवाएं दे रहे हैं। वे कई संस्थानों में जाकर करगिल युद्ध के संस्मरण सुना चुके हैं।

ब्रिगेडियर खुशहाल सिंह

                                           

इनके अलावा कारगिल युद्ध में हिमाचल से संबंध रखने वाले सैनिकों व अफसरों की अहम भूमिका रही। उनमें ब्रिगेडियर खुशहाल सिंह का भी नाम है। शिमला जिला से पहले शहीद यशवंत सिंह थे। इसके अलावा हमीरपुर, सोलन व कांगड़ा जिला से सैनिक शहीद हुए थे। हिमाचल से इस समय सवा लाख से अधिक सैनिक सेना के तीनों अंगों में सेवाएं दे रहे हैं।

कारगिल युद्ध के दौरान 26 जुलाई 1999 को भारतीय सेना ने 'ऑपरेशन विजय' को सफलतापूर्वक अंजाम दिया था। इसी दिन की याद में हर साल 26 जुलाई को विजय दिवस मनाया जाता है।